Bhumi Mata Mandir, Ujjain

श्री आद्य शक्ति अनुष्ठान
उज्जैन में भूखी माता मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। भूखी माता का नाम सुनकर ही उनके बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। दरअसल भूखी माता मंदिर की कहानी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के राजा बनने की किंवदंती जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। तब जवान लड़के को उज्जैन का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद भूखी माता उसे खा जाती थी। एक दुखी मां ने इसके लिए विक्रमादित्य से संपर्क किया।
विक्रमादित्य ने उसकी बात सुनकर कहा कि वे देवी से प्रार्थना करेंगे कि वे नरबलि ना लें, अगर देवी नहीं मानेंगी तो वे खुद उनका भोजन बन जाएंगे।
नरबलि से पहले वाली रात को विक्रमादित्य ने उन्होंने पूरे शहर को सुगंधित भोजन से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोग सजा दिए गए। इन छप्पन भोगों के चलते भूखी माता की भूख विक्रमादित्य को खाने से पहले ही शांत हो गई। कई तरह के पकवान और मिष्ठान बनाकर विक्रमादित्य ने एक भोजशाला में सजाकर रखवा दिए। तब एक तखत पर एक मिठाइयों से बना मानव का पुतला लेटा दिया और खुद तखत के ‍नीचे छिप गए।
रात्रि में सभी देवियां उनके उस भोजन से खुश और तृप्त होकर जाने लगीं तब एक देवी को जिज्ञासा हुई कि तखत पर कौन-सी चीज है जिसे छिपाकर रखा गया है। वह देवी तखत पर रखे उस पुतले को तोड़कर खा लिया। खुश होकर देवी ने सोचा किसने ये यह स्वादिष्ट मानव का पुतला यहां रखा। तब विक्रमादित्य तखत के नीचे से निकलकर सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मैंने रखा है।
देवी ने खुश होकर वरदान मांगने के लिए कहा, तब विक्रमादित्य ने कहा कि मैं चाहता हूं कि कृपा करके आप नदी के उस पार ही विराजमान रहें, कभी नगर में न आएं। राजा की बुद्धिमानी से देवी प्रसन्न हो गई और उन्हें वरदान दे दिया। विक्रमादित्य ने उनके लिए नदी के उस पार मंदिर बनवाया। इसके बाद देवी ने कभी नरबलि नहीं ली और उज्जैन के लोगों को परेशान नहीं किया।

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