इस गांव में भगवान शिव ने स्वयं बनवाया था अपना मंदिर, कुरुक्षेत्र



 तन्त्र मन्त्र के तो अनेकों रहस्य सुने होंगे लेकिन सात्विक और सर्व धर्म की प्रेरणा देने वाले रहस्य बहुत कम सुनने को मिलते हैं। प्राचीन काल और सदियों पहले भगवान व देवी-देवताओं के भी बहुत से रहस्य सुनने को मिलते हैं परन्तु धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के निकट कस्बा इस्माईलाबाद के पास गांव ठसका मीरां जी में पवित्र मारकण्डा नदी के तट पर श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मन्दिर ऐसा मन्दिर है जहां आज के युग में भी चमत्कार सुनने को मिलते हैं। इस मन्दिर के आसपास दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां के लोगों के लिए यहां के चमत्कार जीवन में उन्हें प्रेरणा के साथ-साथ आपसी प्रेम और भाईचारे का संदेश भी देते हैं। 


करीब दो दशक पहले यहां गुरुद्वारे के निर्माण की योजना यहां आसपास दर्जनों गांवों के के लोगों ने बनाई थी। इस क्षेत्र के विकास में संत बाबा महिन्द्र सिंह भैनी वाले का विशेष सहयोग था लेकिन उस समय मारकण्डा नदी के उफान से किसानों की फसलें तहस नहस हो जाया करती थी, यहां के लोगों का कहना है कि स्वप्न के माध्यम से ऋषि मार्कण्डेय की प्रेरणा और गांव ठसका मीरां जी में पवित्र मारकण्डा नदी के तट पर श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मन्दिर का निर्माण हुआ। इस मन्दिर के निर्माण के लिए जमीन भी सरदार भगवन्त सिंह ने दान में दी जिनका पूरा परिवार आज भी मन्दिर की सेवा और सहयोग में तत्पर रहता है।

इस मन्दिर के निर्माण के लिए तनमन धन से सहयोग देने में सिख समुदाय के लोगों के साथ साथ किन्नर वर्ग ने भी विशेष सहयोग दिया है। मन्दिर में महन्त गुरमीत कौर किन्नर ने बताया कि वर्षों से वह यहां सेवा कर रही हैं और अनेकों चमत्कार देख चुके हैं। मंदिर के लिए जमीन दान देने वाले सरदार भगवन्त सिंह के बेटे हरिन्दर सिंह ने बताया कि मंदिर के निर्माण से पहले हर वर्ष उनके खेतों की फसले मारकण्डा नदी के उफान से बर्बाद हो जाती थी परंतु मंदिर के निर्माण के बाद मारकण्डा नदी का पानी अपने आप निकल जाता है और फसलों का भी नुकसान नहीं होता बल्कि उन्हें तो फसलों में फायदा ही फायदा हुआ है।

लोग तो नशे छोड़ने के लिए अनेकों उपाय ढूंढ़ते हैं परन्तु इस मंदिर का तो ऐसा चमत्कार है कि यहां जो भी सच्चे मन से ऋषि मार्कण्डेय की शरण लेता है उसका नशा अपने आप छूट जाता है। यह एक ऐसा मन्दिर है जो आपसी प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है, यहां के व्यवस्थापक महन्त जगन्नाथ पुरी ने बताया करीब डेढ़ दशक पहले बने इस मन्दिर में शिवरात्रि मेला, श्री गणेश महोत्सव, ऋषि मार्कण्डेय जयन्ती इत्यादि कार्यक्रम तो होते ही हैं साथ ही यहां गुरु गोबिन्द सिंह के साहिबजादों के शहीदी दिवस के साथ अखण्ड पाठ और लंगरों का आयोजन भी प्रत्येक वर्ष होता है जिसमें कुरुक्षेत्र, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखण्ड, राजस्थान, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों से भारी संख्या में सभी धर्मों के श्रद्धालु पहुंचते हैं।

प्रत्येक रविवार को तो यहां मेला भी भरता है जिसमें मनौतियां पूर्ण होने पर श्रद्धालु मीठे चावलों की देग देते हैं और घोड़े चढ़ाते हैं। महन्त जगन्नाथ पुरी ने बताया कि ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव की कृपा से आठवें अमर अवतार है, जो भी इनकी शरण में आता है उसकी तुरन्त मनोकामना पूर्ण होती है। उन्होंने बताया कि यह भी आज के युग में अनोखा चमत्कार है कि कोई भी नदी और नहर मारकण्डा नदी के ऊपर से नहीं गुजर सकती है। शिवरात्रि के अवसर पर पवित्र शिवलिंग पर स्वयं नाग देवता पहुंचते हैं जो दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गांव की आबादी से दूर मारकण्डा नदी के तट पर बने श्री मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर में एक साथ कई तीर्थों के दर्शन होते है।

इसके परिसर में ऋषि मार्कण्डेय मंदिर में बाल्यकाल में ऋषि मार्कण्डेय को पवित्र शिवलिंग से उस समय लिपटा दिखाया गया है जब यमराज उन्हें लेने आते हैं और भगवान शिव प्रकट हो कर ऋषि मार्कण्डेय को बचाते है तथा उन्हें अमर होने का वरदान देते है, मन्दिर में शीशे की सुन्दर नक्काशी है, इसी मंदिर में गुरुनानक देव तथा ऋषि मार्कण्डेय को चित्र में दिखाया गया है। ऋषि मार्कण्डेय मन्दिर के साथ ही उनका अखण्ड तप धुना है जहां की राख मात्र को छूने से रोगों से मुक्ति मिलती है। साथ ही भगवान शिव का सुन्दर व अदभुत मन्दिर है जिस में विशाल शिवलिंग और शिव परिवार की प्रतिमाएं विद्यामान हैं।

साथ शनिदेव और नवग्रह मन्दिर भी बने हुए है जिनके लिए भी सरदार दर्शन सिंह के परिवार के सदस्यों ने भूमि दान की थी, शनिदेव मन्दिर और नवग्रह मन्दिर की छटा देखकर लगता है कि यहां मन्दिरों का परिसर न होकर तीर्थ धाम हो, यहीं मन्दिर परिसर के साथ ही पवित्र मारकण्डा नदी के तट पर अखण्ड ज्योति प्रज्वल्लित है जो बारह ज्योतिर्लिंगों से ला कर यहां स्थापित की गई थी। ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त थे। इनके पिता मृकंड थे। भगवान शिव की कृपा से ही मार्कण्डेय का जन्म हुआ था। शिव ने मार्कण्डेय को सोलह वर्ष की आयु प्रदान की थी। मार्कण्डेय बाल्यकाल से ही तीव्र बुद्धि वाले बालक थे। सोलह वर्ष की आयु पूर्ण करने पर जब यमराज ने मार्कण्डेय को यमफांश में पकड़ लिया, तब भगवान शिव ने ही मार्कण्डेय को छुड़ाया और उन्हें लम्बी आयु का वरदान दिया।

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