जानिए आखिर क्यों हनुमान जी ने धारण किया पंचमुखी रूप
मनुष्य के जीवन में आने वाली समस्त कठिनाईयों का सामना भक्ति, पाठ-पूजा से किया सकता है। इतिहास साक्षी है जब-जब भक्तों पर संकट के बादल मंडराए भगवान ने अपने भक्तो की रक्षा के लिए किसी न किसी रूप में अवतार लेकर उनकी रक्षा की है। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। जिनमें से हनुमान जी का अवतार समस्त अवतारों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस अवतार में भगवान शिव ने एक बंदर का रूप धारण किया था। हनुमान जी का पांच मुख वाला विराट रूप पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप हैं। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रधान माने जाते हैं। हनुमान जी के पंचमुखी रूप में पूर्व की तरफ जो मुंह है उसे वानर कहा गया है। जिसकी चमक सैकड़ों सूर्यों के वैभव के समान है। इस मुख का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती है। पश्चिम की तरफ जो मुंह है उसे गरूड़ कहा गया है। यह रूप संकटमोचन माना गया है। जिस प्रकार भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ अजर-अमर हैं उसी तरह इनको भी अजर-अमर माना गया है। उत्तर की तरफ जो मुंह है उसे शूकर कहा गया है। इनकी उपासना करने से अबाध धन-दौलत, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु तथा निरोगी काया प्राप्त होती है। दक्षिण की तरफ जो मुंह है उसे भगवान नृसिंह कहा गया है। यह रूप अपने उपासको को भय, चिंता और परेशानीयों से मुक्त करवाता है। श्री हनुमान जी का ऊर्ध्वमुख रूप घोड़े के समरूप है। यह स्वरुप ब्रह्मा जी की उपासना पर प्रत्यक्ष हुआ था। भगवान राम और रावण का युद्ध जोरों पर था। रावण का भाई अहिरावण तंत्रों-मंत्रों का ज्ञाता एवं मां भवानी का परम भक्त था। उसने अपने भाई रावण की सहायता के लिए भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया और उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल-लोक ले गया। वहां ले जाकर वह उनकी बली देना चाहता था। हनुमान जी को जब भगवान के पाताल लोक में होने का ज्ञात हुआ तो वह तत्काल पाताल लोक में पहुंच गए। पाताल लोक के द्वार पर मकरध्वज हनुमान जी का बेटा रक्षक रूप में पहरा दे रहा था। मकरध्वज से युद्ध कर उसे पराजित कर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्री राम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया। वहां अलग-अलग दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्री राम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी। अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा। यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।
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