शिवपुराण क्यों पढें? Shiv puran kyon padhe ??
* जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥
भावार्थ:-जिस भीषण हलाहल विष से सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन! तू उन शंकरजी को क्यों नहीं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है?
मित्रो लगभग सभी पुराणों में शिवजी को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है, कहा गया है कि शिवजी सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं, किन्तु शिव पुराण में भगवान् शिवजी को सदैव लोकोपकारी और हितकारी बताया गया है।
त्रिदेवों में भगवान् शिवजी को संहार का देवता भी माना गया है, अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है, अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती।
शिवजी तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खायें जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाया करते हैं, शिवजी को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है, भोलेनाथ तो औघड़ बाबा हैं, जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालायें, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगायें एवम् हाथ में त्रिशूल पकड़े हुयें वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं।
इसीलिये शिवजी को नटराज की संज्ञा भी दी गई है, उनकी वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है, शीश पर गंगा और चन्द्र, जीवन एवं कला के द्योतम हैं, शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है, यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने जिन्हें "अशिव वेषधारी" और "नाना वाहन नाना भेष" वाले गणों का अधिपति कहा है, शिवजी जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं, वे नीलकंठ कहलाते हैं, क्योंकि समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष को शिवजी ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था, तभी से शिवजी नीलकंठ कहलायें, क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही शिव पुराण की रचना हुई, शिव पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है, सज्जनों! शिव पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को मुक्ति के लिये शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है, मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिये।
वेदों और उपनिषदों में ओऊम् के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है, ओऊम् के अतिरिक्त गायत्री मन्त्र के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है, परन्तु शिव पुराण में आठ संहिताओं का उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक है, शिवजी ही चराचर जगत् के एकमात्र सरल व सुलभ देवता हैं।
शिव के निर्गुण और सगुण रूप का एक ही हैं, शिवजी समस्त प्राणियों पर दया करते हैं, इस कार्य के लिए ही शिवजी सगुण रूप धारण करते हैं, जिस प्रकार अग्नि तत्त्व और जल तत्त्व को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं, मित्रो शिवजी की महिमा का गान ही प्राणी मात्र का ध्येय है।
* निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं॥
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं॥
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं॥
भावार्थ:-निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ॥
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