जानिए कहां पर दिन में तीन बार बदलती हैं देवी मां अपना रूप
उत्तराखंड में बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ाव से 15 किमी की दूरी पर स्थित चमत्कारिक इस मंदिर में देवी मां दिन में तीन बार रूप बदलती हैं। देवी मां देवभूमि उत्तराखंड की रक्षक के रूप में जानी जाती हैं। श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के निर्माण से अलकनंदा में बनी झील के डूब क्षेत्र में सिद्धपीठ धारी देवी मंदिर की प्राचीन शिला और मंदिर भी आ गया। सिद्धपीठ धारी देवी का नया मंदिर प्राचीन स्थल से ठीक 21 मीटर की ऊंचाई पर निर्माणाधीन है।
मारकंडे पुराण के अनुसार कालीमठ में मां दुर्गा का काली के रूप में अवतार हुआ था। यहां से मां काली कलियासौड़ में अलकनंदा नदी किनारे प्राचीन शिला पर आकर शांत हुई और कल्याणी स्वरूप में आकर मां दुर्गा भक्तों का कल्याण करने लगी।
पांडे वंशजों की ओर से पुजारी के रूप में 17 वीं शताब्दी से सिद्धपीठ धारी देवी में भगवती देवी की पूजा अर्चना की जाती रही है। वर्ष 1987 से पूर्व काली की उग्र पूजा के साथ ही यहां पर बकरों की बलि भी दी जाती थी।
बाद में भक्तों के अनुरोध, पहल और मंदिर के पंडितों के सहयोग से 1987 में बलि बंद हो गयी और तब से बलि की जगह हवन और यज्ञ के साथ ही फूल व नारियल से मां की पूजा अर्चन की जाने लगी।
सिद्धपीठ मां धारी देवी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त मंदिर में घंटियां और छत्र चढ़ाते हैं। जून 2013 की अलकनंदा नदी की भीषण बाढ़ में मंदिर में चढ़ी ऐसी लाखों घंटियां भी बह गयी थीं। इसके बावजूद पिछले तीन साल में श्रद्धालु यहां लगभग 40 हजार घंटियां मनोकामनाएं पूरी होने पर चढ़ा चुके हैं।
सिद्धपीठ धारी देवी मंदिर में चैत्र नवरात्र की पूजा का विशेष महत्व है। नवरात्रों पर प्रतिदिन प्रात: साढ़े पांच बजे से विशेष पूजा शुरू होकर सांय तक चलती है। घट स्थापना पूजा के साथ ही नवरात्र पर मंदिर में हरियाली भी बोई जाती है जो नवमी के दिन प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित की जाती है
इस संबंध में मुख्य पुजारी और प्रबन्धक आद्य शक्ति मां धारी पुजारी न्यास पंडित लक्ष्मी प्रसाद पांडे कहते हैं कि सिद्धपीठ मां धारी देवी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। चैत्र नवरात्रों पर यहां की गयी पूजा हवन का विशेष महत्व है, पर वर्तमान में मंदिर के अस्थायी परिसर में जगह कम होने पर श्रद्धालुओं की संख्या बढऩे पर काफी परेशानियां होती हैं। दुर्घटना भी घटित होने की संभावना बनी रहती है।
ऋषिकेश से लगभग 118 किमी दूर और श्रीनगर से लगभग चौदह किमी दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कलियासौड़ में राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग आधा किमी की पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
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