जयंती देवी मंदिर, चंडीगढ़ (Maa Jayanti Devi Temple, Chandigarh)
100 से भी ज्यादा सीढिय़ां चढ़ कर माता की पिंडियों के दर्शन करने हों तो चंडीगढ़ के जयंती माजरी गांव में माता जयंती देवी के मंदिर जाया जा सकता है। करीब दो सौ साल तक छोटे से इस मंदिर को डाकू गरीब दास ने बनवाया था। मनी माजरे के जंगलों में रहने वाला गरीब दास माता जयंती देवी का बहुत बड़ा भक्त था। माता ने उसे दर्शन दिए तो उसके बाद उसने यहां पर माता का मंदिर बनवाया। पूरा साल इस मंदिर में कढ़ी चावल का लंगर चलता रहता है। पांच सौ साल पुराने इस मंदिर को शक्ति पिंड की स्थापना की गई थी। मशहूर कथा के अनुसार बाबर के राज्य में हथनौर का राजा एक हिंदू राजपूत था। उसके 22 भाई थे। उनमें से एक भाई की शादी कांगड़े के राजा की बेटी से तय हुई। वह माता जयंती देवी की बहुत बड़ी उपासक थी। रोजाना माता के दर्शन करके ही जलपान करती। उसने माता से कहा कि मैं तुम्हारे बिना इतनी दूर कैसे रह पाऊंगी।
माता ने उसे सपने में दर्शन दिए और आश्वासन दिया कि बेटी तुम्हारी डोली यहां से उस समय उठ पाएगी जब तुम्हारे मेरी डोली भी साथ में उठेगी। शादी के बाद जब डोली नहीं उठी तो सब चिंता में पड़ गए। इसके बाद लड़की ने अपने पिता को सपने वाली बात बताई। उसके बाद माता की डोली भी सजाई गई। लड़की और माता की डोली हथनौर वाले राजा के साथ विदा हुई। राजा ने पुजारी को भी साथ भेजा। उसी वंश के पुजारी अब तक माता की पूजा करते आ रहे हैं। करीब दो सौ साल तक छोटे से रहे इस मंदिर को बाद में डाकू गरीब दास ने बनाया। वह मुल्लांपुर का राजा गरीब दास कहलाया।
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