कैसे हुई कांवड़ परंपरा की शुरुआत

कैसे हुई कांवड़ परंपरा की शुरुआत

ॐ नमः शिवाय...
कांवड़_लाने_की_परंपरा
आपने #भगवान_शिवजी के परम प्रिय मास श्रावण में भक्तो को अपने कंधे पर कांवड़ में जल लाते देखा होगा | यह पैदल कोसो चल कर पवित्र जल लाते है और फिर इस जल से शिवजी का अभिषेक करते है |
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#श्री_विष्णुजी अवतार भगवान #परशुरामजी ने अपनी अनन्य #शिव_भक्ति में कांवड़ परंपरा की शुरुआत की | वे गंगा का जल अपनी कांवड़ में भर के रोज #शिवजी का अभिषेक किया करते थे | रामायण में भी #रावण और #श्री_राम दोनों को परम #शिवभक्त बताया गया है और दोनों ने कांवड़िया बनकर शिव अभिषेक किया था |
कहते है इस यात्रा से मनुष्य एक तप से होकर गुजरता है जिससे आत्मविश्वास और मन में संतोष मिलता है | यात्रा पूर्ण करने पर व्यक्तित्व में निखार आता है | कांवड़ यात्रा पूर्ण करने से मनुष्य में संकल्प शक्ति बढती है |
#जानें_क्या_है_कांवड़_का_अर्थ... 
कांवड़ को #कांवर भी पुकारते है जिसका अर्थ है कंधे। इस कांवड़ में कंधे का विशेष भूमिका है , इसी कंधे के सहारे पवित्र जल की कांवड़ लाई जाती है | कंधे कांवड़ में संतुलन का कार्य करते है । #शिवजी भक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए ईष्ट शिवलिंगों तक पहुंचते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के लिए पूरे विश्व में अलग पहचान रखने वाले भारतवर्ष में कांवड़ यात्रा के दौरान भोले के भक्तों में अद्भुत आस्था, उत्साह और अगाध भक्ति के दर्शन होते हैं । कांवडिय़ों के सैलाब में रंग-बिरंगी कांवड़े देखते ही बनती हैं।
#कांवडिय़ों_का_रूप_और_पोशाक ...
#भोले_बाबा को मनाने के लिए कांवडिये रंग बिरंगी पोशाक पहनते है पर सबसे ज्यादा पहनी जाती है भगवा पोशाक | भगवा रंग #हिन्दुत्व का प्रतीक है | इस यात्रा के दौरान कोई भी नशा नही करे और सादा भोजन और उच्च विचार रखे | जहा तक हो सके मन में #भोलेनाथ की जयकार ही लगती रहनी चाहिए | अपनी कांवड़ को जमीन पर न रखे न ही इसका पानी गिरने दे |
#हर_हर_हर_हर_महादेव....

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