क्यों दिया इंद्र ने पारिजात वृक्ष को फल न लगने का श्राप
Why did the Indra curse not to get the fruits of the parched tree? |
पारिजात वृक्ष को औषधिय गुणों की खान कहा जाता है, पारिजात वृक्ष से जन आस्था जुडी हुई है। इस वृक्ष की
एक मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुंद्र मंथन से हुई थी। जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के अदभुद फूलों को पाकर सत्यभामा ने भगवान कृष्ण से जिद की कि पारिजात वृक्ष को स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए। श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक भेजा मगर इन्द्र ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिस पर कृष्ण ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और पारिजात प्राप्त कर लिया। पारिजात छीने जाने से रूष्ट इन्द्र ने इस वृक्ष पर कभी न फल आने का श्राप दिया। पारिजात वृक्ष का उल्लेख भगवत गीता में भी मिलता है।
पारिजात वृक्ष का उल्लेख पारिजातहरण नरकवधों नामक अध्याय में भी किया गया है। हरिवंश पुराण में ऐसे ही एक वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसे छूने मात्र से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। पारिजात वृक्ष कल्प वृक्ष का ही एक प्रकार है। इसका वैज्ञानिक नाम एडेनसोनिया डिजीटाटा है। इसका फूल खूबसूरत सफेद रंग का होता है जो कि सूखने के बाद सुनहरे रंग का हो जाता है। इस फूल में पांच पंखुड़ियां होती हैं। किवदंती के अनुसार इसकी शाखायें सूखती नहीं बल्कि सिकुड़ जाती हैं तथा शुष्क तने में ही समाहित हो जाती हैं।
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