भगवान की भाँति ज्ञान भी अमर है और शाश्वत है
महात्मा बुद्ध ने कहा था- मैं पहले भी था, मैं पहले भी आया था, मैं अब भी हूँ और आगे लगातार आता रहूँगा। भगवान बुद्ध के इस कथन का मतलब है कि मेरी तरह के महापुरुष समय-समय पर आते रहेंगे। वे भिन्न-भिन्न रूप धारण करके धरती पर आयेंगे। वेश से मतलब नहीं होगा बल्कि अन्दर से उनका रूप भगवान की इच्छा के अनुरूप जागा हुआ होगा। प्रभु-प्रेरित आध्यात्मिक महापुरुष आते रहेंगे और जनमानस को जगाते रहेंगे।
प्रख्यात अन्तरराष्ट्रीय विचारक आगस्टाइन ने भी कहा है कि ये ज्ञान जो है ना, वो नया नहीं है। यह पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा। प्रत्येक सच्चे आध्यात्मिक महापुरुष ने कहा है कि जो पहले से है, उसे प्रकट करने के लिए मैं नहीं आया हूँ, वरन् जो मौजूद था उसे आज की परम्परा को दे रहा हूँ। मतलब ये ज्ञान निरन्तर प्रवाहमान एक दैवीय परम्परा है। यह ज्ञान लोगों तक लगातार पहुँचते रहना चाहिए।
ईसा मसीह ने ऐसा ही कहा था- उन्होंने कहा था कि अब्राहिम के पहले भी मैं था, आज भी मैं हूँ और भविष्य में भी आऊँगा। अर्थात् ये ज्ञान पहले भी दिया गया और सतत् दिया जाता रहेगा। बन्धुओं! जरा सोच करके देखिये कि कोई व्यक्ति यह कहे कि कि अमुक ज्ञान मैंने पैदा किया है और मैं इसे लोगों को दे रहा हूँ तथा यह मेरे द्वारा सृजित मौलिक ज्ञान है, तो यह बात गलत होगी ना?
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे पार्थ! मैंने पहले भी ये ज्ञान दिया था, अब भी दे रहा हूँ और तुम्हें इसका माध्यम बनाया है, क्योंकि तुम मेरे भक्त हो, प्रिय हो, शिष्य हो, सखा हो। ज्ञान का यह प्रवाह निरन्तर जारी रहेगा, यह कभी भी रुकने वाला नहीं। प्रभु के उद्घोष 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत' की तरह सदा से उपलब्ध ज्ञान भी आवश्यकता के अनुसार सदा आता रहेगा। प्रभु आए तो ज्ञान आया, सन्त आए तो ज्ञान आया; यह समझा जाना चाहिए। क्योंकि ज्ञान और ईश्वर समानार्थी शब्द हैं।
इस सृष्टि में ज्ञान के अवतरण और वितरण का यह क्रम निरन्तर जारी रहेगा। जनसामान्य इस तथ्य को समझे और इस ज्ञान को लेता व ग्रहण करता रहे और उससे लाभ उठाकर निज जीवन व सामाजिक जीवन दोनों को सुन्दर एवं समुन्नत बनाए, यही हमारी इच्छा है।
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