त्रेतायुग की एक सांझ...*

*त्रेतायुग की एक सांझ...*
राम - रावण युद्ध की आज सम्भवतः अंतिम सांझ थी । एक एक कर के रावण के सभी वीर योद्धा मारे जा चुके थे ।
रावण अपने महल में था । 
मंदोदरी ने एक बार फिर रावण को समझाया - "अब भी समय है, जा के श्री राम से क्षमा मांग लीजिये और देवी सीता को ससम्मान उन्हें सौंप दीजिये । राम दयालु हैं, आपको क्षमा कर देंगे । हो सकता है उनके क्षमा करने के पश्चात समस्त असुर जगत आपको क्षमा कर दे ।"
रावण चुपचाप मंदोदरी को सुनता रहा और अपने महल के बाहर देखता रहा । सूर्य दूर तक फैले विशाल सागर में डूब रहा था ।
रावण सिहर उठा । चुपचाप महल से निकल गया । रात घिर आयी थी ।
रावण सीधे अशोक वाटिका पहुँचा । निगरानी करने वाली राक्षसियाँ नींद में थीं । रावण ने किसी से कुछ नहीं कहा और सीधे उस अशोक के वृक्ष के पास पहुंचा जहां देवी सीता वृक्ष से टेक लगाए, आंखें बंद किये बैठी हुई थीं । अजीब सी शांति थी उनके चेहरे पर ...
आहट पाकर वो चौंकी- "कौन ?!  रावण !!!!
रावण ने कुछ न कहा और वहीं उनके सामने भूमि पर बैठ गया ।
सीता ने आश्चर्य से पूछा- "क्या हुआ लंकापति ?! आज भूमि पर और इतने शांत !?! आज मुझे डराओगे धमकाओगे नहीं ?!!!
रावण ने बेहद शांत स्वर में कहा - "मेरे कृत्यों के लिए मुझे क्षमा कर देना माते । आपको तो पता ही है कि ये सब कुछ एक श्राप के कारण हुआ है ।"
सीता मुस्कुराईं और कहा- "हाँ वत्स ! हम सब को ये पता है । इसमें तुम्हें क्षमा मांगने की कोई आवश्यकता नहीं । तुम कुछ और कहना चाहते हो, वो कहो ।"
सीता ने जैसे रावण का मन पढ़ लिया।
रावण थोड़ा निश्चिंत हुआ -" माते ! मैं आपका हरण कर लाया, यहां अशोक वाटिका में रखा, प्रताड़ित किया । भविष्य में तो लोग मुझे हमेशा बुरा ही कहेंगे और ऐसा करने वाले को रावण की संज्ञा देंगे, ये ही बात मुझे सता रही है ।"
सीता ने रावण को देखा, आंखें बंद कीं और गहरी सांस भर के बोलीं - "नहीं रावण ! भविष्य में स्त्रियों को इस तरह के पापियों, नीच और घृणित पुरुषों का सामना करना होगा कि वो कहेंगी "इससे अच्छा तो वो रावण था जिसने सीता का हरण तो किया लेकिन उन्हें स्पर्श तक नहीं किया ।"
रावण हाथ जोड़ कर चकित हो कर माता सीता को देखता रह गया ।।...
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