रावण का दहन
रावण का दहन
भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है वह है मानवीय गरिमा को समृद्ध करना नवरात्र के साथ ही दशहरे का सबको बेसब्री से इंतजार रहता है। रावण-वध और दुर्गा पूजन के साथ विजयदशमी की चकाचौंध हर जगह होती है। दश यानी दस व हरा यानी हार गए हैं। दशहरे के पहले नौ दिनों के नवरात्रि में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से प्रभारित होती हैं व उन पर नियंत्रण प्राप्त होता है। दसों दिशाओं पर विजय प्राप्त हुई होती है। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी कहा जाता है।
यह साड़े तीन मुहूर्तों में से एक है। दुर्गा नवरात्रि की समाप्ति पर यह दिन आता है। इसलिए इसे नवरात्रि का समाप्ति-दिन भी मानते हैं। कुछ स्थानों पर नवरात्रि नवमी के दिन, तो कुछ स्थानों पर दशमी के दिन विसर्जित करते हैं। इस दिन सीमोल्लंघन, शमीपूजन, अपराजिता पूजन व शस्त्र पूजा, ये चार विधियां की जाती हैं। दशहरे का त्यौहार जहां बच्चों के मन में मेले के रुप में आता है तो बड़ों को रामलीला की याद और स्त्रियों के लिए पावन नवरात्र के रुप में यादों को जगाता है।
रामलीला का आयोजन- दशहरा से दस दिन पूर्व ही देश के कोने-कोने में रामलीलाओं का आयोजन शुरू हो जाता है जिसमें प्रभु राम के जीवन का वर्णन दिखाया जाता है और दशहरे वाले दिन रावण का संहार किया जाता है। पूरे देश भर में इस दिन विभिन्न जगहों पर रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के बडे-बडे पुतले लगाए जाते हैं और शाम को श्रीराम के वेशधारी युवक अपनी सेना के साथ पहुंच कर रावण का संहार करते हैं। यह आयोजन सभी आयु वर्ग के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं। राम-रावण युद्ध की अहम वजह थी रावण द्वारा राम की पत्नी सीता का अपहरण एवं रावण का बढ़ता अत्याचार।
इस कहानी के सहारे जनता में यह संदेश दिया जाता है कि अगर आम आदमी भी चाहे तो वह पुरुषोत्तम बन सकता है और अत्याचार के खिलाफ लडऩा ही बहादुरी है। देश के अन्य शहरों में भी हमें दशहरे की धूम देखने को मिलती है। गुजरात में जहां गरबा की धूम रहती है तो कुल्लू का दशहरा पर्व भी देखने योग्य रहता है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। यह एक पर्व एक ही दिन अलग-अलग जगह भिन्न-भिन्न रुपों में मनाया जाता है लेकिन फिर भी एकता देखने योग्य होती है। इस साल भी हमें आशा है कि दशहरे का त्यौहार आपके जीवन में बुराइयों का अंत करेगा और समाज में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करेगा।
शक्ति पूजा का महत्व- बंगाल में आज भी शक्ति पूजा के रूप में प्रचलित है। अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए मशहूर बंगाल में दशहरा का मतलब है दुर्गा पूजा। बंगाली लोग पांच दिनों तक माता की पूजा-अर्चना करते हैं जिसमें चार दिनों का खासा अलग महत्व होता है। ये चार दिन पूजा का सातवां, आठवां, नौवां और दसवां दिन होता है जिसे क्रमश: सप्तमी, अष्टमी, नौवीं और दसमी के नामों से जाना जाता है। दसवें दिन प्रतिमाओं की भव्य झांकियां निकाली जाती हैं और उनका विसर्जन पवित्र गंगा में किया जाता है। गली- गली में मां दुर्गे की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं को राक्षस महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
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