52 no. of shakti peeth

कंकालीन पीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि यहां पर माता सती का कंगन गिरा था। कंगन का अपभ्रंश कंकर हुआ अौर कंकर से ही इस गांव का नाम कांकेर पड़ गया।
सोमवंश के पतन के बाद 14वीं सदी में कंड्ररा वंश के शासन काल में पद्मदेव के कार्यकाल में यहां मंदिर की स्थापना का गई।पौराणिक कथानुसार राजा प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया लेकिन अपने जमाता व देवी सती के पति भगवान शंकर को निमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती ने इसका कारण पूछा तो भगवान शंकर के बारे में भला बुरा कहा जिससे आहत होकर देवी सती ने यज्ञ अग्निकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये। सती के वियोग में भगवान शंकर व्यथित हो गए। उनके तांडव से तीनों लोकों में प्रलय के आसार हो गए। भयभीत देवताओं ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को खंड-खंड करते गए। जहां-जहां देवी के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ बनीं। कहा जाता है कि यहां पर माता सती के कंगन गिरा था।
कहा जाता है कि इस मंदिर में पहले महिलाएं प्रवेश करते ही बेहोश हो जाती थी या अनहोनी हो जाती थी। इसलिए यहां पर महिलाअों का मंदिर आना वर्जित था। 1990-91 में माता की विशेष पूजा-अर्चना के बाद मां से प्रार्थना की गई। जिसके बाद महिलाअों का प्रवेश करवाया गया। मंदिर परिसर में एक चट्टान पर रहस्मयी लिपि में कुछ लिखा हुआ है। माना जाता है कि जो भी इसे पढ़ लेगा उसे खजाने की प्राप्ति होगी।

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