घ्रुश्नेश्वर मंदिर

घ्रुश्नेश्वर मंदिर को कभी-कभी घर्नेश्वर ज्योतिर्लिंग और धुश्मेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और साथ ही शिव पुराण में वर्णित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह एक है।
अंतिम ज्योतिर्लिंग “घ्रुश्नेश्वर मंदिर”
घर्नेश्वर शब्द का अर्थ ‘करुणा के स्वामी’ से है। यह मंदिर हिन्दुओ की शाव्यवाद परंपरा के अनुसार महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव का बारहवां और अंतिम ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है।
घ्रुश्नेश्वर मंदिर का इतिहास
घ्रुश्नेश्वर मंदिर एलोरा (वेरुल) के पास स्थित है और यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट एलोरा की गुफाओ से केवल 0.5 (आधा) किलोमीटर ही दूर है। यह मंदिर उत्तर-पश्चिम शहर औरंगाबाद से 30 किलोमीटर और पूर्व-उत्तरपूर्वी शहर मुंबई से 300 किलोमीटर दूर है।
13 वी और 14 वी शताब्दी में हिन्दू-मुस्लिम के बीच हुए युद्ध में दिल्ली सल्तनत ने इस मंदिर को तोड़ दिया था।
लेकिन 16 वी शताब्दी में वेरुल के भगवान शिव के सच्चे भक्त मालोजी राव भोसले (छत्रपति शिवाजी महाराज के दादाजी) एक बार भगवान घ्रिश्नेश्वर की कृपा से सांप के बिल में छुपा हुआ खजाना मिला। उन्होंने खजाने से मिले सारे पैसो का उपयोग मंदिर और शिखरशिनगंपुर के उद्धार और पुनर्निर्माण में किया।
और इसके बाद 18 वी शताब्दी में रानी अहिल्याबाई होलकर ने भी मंदिर की मरम्मत करवाई। साथ ही मंदिर परिसर में उन्होंने दुसरे मुख्य हिन्दू मंदिर जैसे वाराणसी के काशी विश्वनाथ, गया का विष्णु मंदिर और सोमनाथ में विशालकाय ज्योतिर्लिंग की भी स्थापना करवाई।
वर्तमान में यह हिन्दुओ के लिए एक महत्वपूर्ण और सक्रीय धार्मिक स्थल है, जहाँ हर साल लाखो श्रद्धालु आते है। मंदिर में कोई भी प्रवेश कर सकता है लेकिन गर्भ-गृह में प्रवेश करने के लिए हिन्दू परंपराओ का पालन करना अनिवार्य है, यहाँ केवल खुले बदन वाले व्यक्तियों को ही प्रवेश दिया जाता है।
240 फीट *185 फीट में बन यह मंदिर भारत का सबसे छोटा ज्योतिलिंग भी है। मंदिर के बीच में भगवान विष्णु के दशावतार का चित्रण भी किया गया है। मंदिर के हॉल का निर्माण 24 पिल्लरो से किया गया है। इन पिल्लरो पर आज भी हमें प्राचीन समय के शिलालेख और हस्तलिपियां दिखाई देती है। गर्भगृह 17 फीट * 17 फीट फैला हुआ है। जहाँ भगवान शिव के पिण्ड का मुख पूर्व की तरफ रखा गया है।
घ्रुश्नेश्वर मंदिर महाराष्ट्र राज्य का एक प्रतिष्ठित मंदिर है। मंदिर की दीवारों पर प्राचीन समय के हिन्दू देवी-देवताओ का चित्रण किया गया है।
घ्रुश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थल पुराण
एक बार राजा शिकार करने के लिए गए थे। शिकार करते समय राजा ने उन जानवरों की हत्या कर दी जो ऋषि और मुनियों के साथ रहते थे। यह सब देखते ही, क्रोधित संतो ने राजा को श्राप दे दिया और परिणामस्वरूप उनके पुरे शरीर में कीड़े लग गए।
इसके बाद श्रापित राजा जंगलो में भटकने लगा। प्यास की वजह से उनका गला भी पूरी तरह से सुख चूका था। जंगल में उन्हें कही भी जल नही मिला। अंततः राजा को पानी का एक गड्डा मिल ही गया, जिसे घोड़े ने बनाया था। लेकिन जैसे ही राजा ने वह पानी पिया तो एक चमत्कार हो गया। पानी पीते ही राजा का शरीर स्वस्थ हो गया।
इसके बाद राजा ने वही तपस्या करने शुरू की। राजा की तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी खुश हुए और प्रकट होकर उन्होंने परस्थ तीर्थ की स्थापना की। वही आस-आस उन्होंने विशालकाय और पवित्र झील का निर्माण भी करवाया।
वहाँ पर बने हुए ब्रह्मा सरोवर को बाद में शिवालय के नाम से जाना जाता है।

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