हिन्दु पर्व त्योहार की वैज्ञानिकता, Hindu Festival



हिन्दु पर्व त्योहार की वैज्ञानिकता और समाजिक सुरक्षा
आदि धर्मो मे सनातन धर्म एक मौलिक धर्म है .कालान्तर मे इसे हिन्दु धर्म भी कहा गया . इस धर्म मे अनेकानेक विविधता है . हिन्दु धर्म मे साल के तीन सो पैसठ दिन भी त्योहार मनाया जाता है . भारत मे ही : ऋतु है इसलिऐ हर ऋतु त्योहार भी इसी के अनुरूप होते है . त्योहार मे प्रसाद -भोजन का भी महत्व होता है .इसका कोई कोई सार्थक मतलब है . जैसे आज पुरा विश्व कोई कोई विशेष  दिवस मनाने की परम्परा अपना रही है.

सावन और शिव रूद्र अभिषेक से भूमि शुद्धि-
आज सावन मे भगवान शिव का दुध से अभिषेक होता है कई हजार लीटर दुध पृथ्वी मे समाहित हो जाता है . अभिषेक का धार्मिक महत्व है पर इसका इतिहासिक और वैचारिक महत्व भी है . लार्ड मैकाले ने लिखा कि अठारहवीं सदी तक भारत मे कोई गरीब नही दिखा . उस समय भारत मे कुपोषण भी नही था . भारत मे दुध की नदी बहती थी .   आयुर्वेद के अनुसार सावन का दुध पतला और ताकतवर पदार्थो से कमजोर होता है . नये घास मे पशु के चारा के साथ कीजे मकोडे भी पेट मे चले जाते है . इनका दुष्प्रभाव दुध पर होता है. यही दुध जब जमीन पर गिरकर नीचे जाता है तो दुध शुद्ध होकर पृथ्वी की उर्वरा शक्ति को बढाता है . क्योकि दुध मे मिठ्ठी और मानव शरीर के लिऐ सभी पोषक तत्व है . आज फैक्टरी और शहरो का दूषित जल भूमि के  उर्वरा शक्ति को खत्म कर रही है . फल सब्जी जहरीले हो रहे है . इसकी शुद्धता के लिऐ रुद्राभिषेक भूमि और मिट्टी  शुद्धिकरण का सबसे उत्कृष्ट प्राचीन प्रयास है . विदेशी प्रभाव शिक्षा नीति के कारण हम अर्थ और विचार से दरिद्र हो गये है तो हमे अपने ही संस्कार को कोसते है .

पितृ पक्ष - जीवो को सहयोग और ट्रेड फेयर -
किसान खेती बारी के काम को पूरा करता है और पितरो का एक विशेष पक्ष ( आश्विन कृष्ण पक्ष) मनाता है . इस पक्ष मे गया (बिहार) मे श्राद्ध का महत्त्व है . आज सरकार तरह तरह का मेला का आयोजन     क्षेत्र के विकाश. लघु-कुटीर उद्योग के प्रचार प्रसार आदि के लिऐ      करती है . हमारे पूर्वजो और सनातन मनिषियो ने पितृपक्ष मेला (गया ) ,गंगा सागर मेला , कुम्भ मेला , बोलबम देवघर मेला जैसे हजारो मेला का आयोजन स्वाभाविक तौर से हजारो वर्षो से रखा है . इन मेला और त्योहार का वैज्ञानिक.सामाजिक और आर्थिक महता को देखते पुरी दुनिया के देश आज ट्रेड फेयर का आयोजन करने लगे है .
    
पितृ पक्ष मे पन्द्रह दिन हम नदी तालाब मे जाकर उसकी सफाई कर रोज जलान्जलि देते है . अक्षत आटा फुल आदि जल मे डालकर जलीय जीवो का रक्षण करते है . कुत्ता . कौआ .गाय और ब्राह्मण को भोजन देकर सामाजिक संरक्षण करते है . अपने पूर्वजो को आद करते है .

दुर्गापूजा ( नवरात्र) - समाजिक समरसता
नवरात्र की समाप्ति बरसात के अन्त और हथिया नक्षत्र के समय होता है . इस समय स्त्री शक्ति की पूजा आश्विन शुक्ल पक्ष मे दस दिनो का होता है . बरसात के बाद हम घर . तालाब और सामुदायिक स्थल की साफ सफाई सार्वजनिक रूप करते है . इसमे नौ तरह के पेड पौधे की पूजन करते है .मिट्टी से बनी मूर्तिशिल्प से कला और सांस्कृतिक कला आदि का विकास होता है . समाज के कई तबको को रोजगार मिलता है .कुमारी कन्याऔ की पूजा से स्त्री शक्ति का विकास होता है.गणेश उत्सव का भी यही लक्ष्य होता है . समाजिक उत्थान के लिऐ त्योहार समरसता का सन्देश देते है . नवरात्र मे पशु पेड पोधो ( बेल ,अपराजिता , अशोक आदि तो पशु मे साँढ बैल , गाय समाज मे राजा और वैश्या की सुरक्षा भी समाज का आवश्यक अँग है . इनके दरवाजा की मिट्टी से दुर्गा जी का स्नान इसी सामाजिक सुरक्षा का द्योतक है )
    

इस समय दो ऋतु का संगम भी होता है . ऋतु सँगम (जोड) का समय स्वास्थ्य के लिऐ बाधा कारक होता है .जैसे शरीर मे दो अस्थियो के जोड का जगह संवेदनशील  अँग होता हैइस लिऐ नवरात्र मे उपवास आत्म और चित शुद्धि की आवश्यकता होती है . इसे करने से आनेवाले ऋतु मे शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है .

दीपावली - उर्जा संरक्षण
दीपावली लक्ष्मी के प्रसन्नता का पर्व है . इसे पहले हम धन्वन्तरि की पूजा कर आयुर्वेद के जडी बूटी की सुरक्षा. स्वास्थ्य की तन्दुरस्ती  के ख्याल के बाद लक्ष्मी की कामना करते है . दीपावली मे दीपक ही दीपक हम कँरज, नीम ,तिल , सरसो तेल और घी का जलाते है . इन सब तेल का दीपक जलाने से घर गर्म होता है और बरसात के बाद के फँगस कीडे मकोडे मरते है . तो शुद्ध घी जलने  से आक्सीजन मिलता है.दीपावली की रात अमावस कि रात होती है .इस समय सूर्यकांत रोशनी भी भूमि पर बहुत धीमी पडती है इसलिऐ उर्जा को बरकरार रखने के लिऐ दीपक को जलाकर हम घरो और वातावरण को गर्म करते है . क्रिसचन मे भी नये घरो को गर्म ( वार्म) करने और कैन्डल जलाने की परम्परा अन्य दिनो मे है .

छठ
छठ का त्योहार बहुत ही शुद्धि का माना जाता है . इस समय फिर एक बार नदी तालाब की सफाई .जल और खानपान शुद्धि होती है . प्रसाद मे मोटा आँटा . गुड और घी  की ठोकूआ शीत ऋतु मे उपयुक्त भोज्य पदार्थ है . ठीक इसी तरह मकर सँक्राति के मास मे ठँड से बचने के लिऐ तील खाया जाता है .
इस तरह हिन्दु समाज मे किसी भी पर्व - त्त्यौहार वैज्ञानिक  और समाजिक महत्व रखता है



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