महिलाओं को भी विधिपूर्वक श्राद्ध करने का अधिकार

हिन्दू आस्था में श्राद्ध का पालन हमारे पूर्वजो (पितरों) की शान्ति के लिए किया जाता हैं। हमारी भारतीय संस्‍कृति के हिसाब से पितृपक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से परिजनों को को पूर्वजों का आर्शीवाद और सुख प्राप्‍त होता है जिससे कि घर परिवार में में सुख-शान्ति व समृद्धि हमेशा बनी रहती है।
हिन्‍दु शास्‍त्रों के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितरों की सद्गति के लिए कुछ खास परिस्थितियों में महिलाओं को भी विधिपूर्वक श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है। गरूड़ पुराण में बताया गया है कि पति, पिता या कुल में कोई पुरुष सदस्य नहीं होने या उसके होने पर भी यदि वह श्राद्ध कर्म कर पाने की स्थिति में नहीं हो तो महिला श्राद्ध कर सकती है।
1. गरूड़ पुराण के अनुसार पन्द्रह दिन के पितृ पक्ष में व्यक्ति को पूर्ण ब्रह्मचर्य, शुद्ध आचरण और पवित्र विचार रखना चाहिए।
2. शंकराचार्यों ने भी इस प्रकार की व्यवस्थाओं को तर्क संगत इसलिए बताया है ताकि श्राद्ध करने की परंपरा जीवित रहे और लोग अपने पितरों को नहीं भूलें। अन्तिम संस्कार में भी महिला अपने परिवार में मुखाग्नि दे सकती है।
3. यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा। शास्त्रों के अनुसार पितरों के परिवार में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र अथवा पुत्र ही न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य पिंडदान करने के पात्र होते हैं।

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