भगवान विष्णु को क्यों मांगनी पड़ी एक दैत्य से तीन पग भूमि

 भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में सब जानते हैं। लेकिन एक बार देवताओं और दैत्यों में युद्ध हुआ। जिसमें सभी दैत्यों की मौत हो जाती हैं। दैत्यगुरु शुक्राचार्य उनको लेकर पाताल में चले जाते हैं। वहां पर वह उन सभी को संजीवनी से पुन: जीवित कर देते हैं। 

इसके पश्चात् राजा बलि को स्वर्ग पर अधिकार कराने के लिए गुरु शुक्राचार्य सौ अश्वमेघ यज्ञ करवाने की योजना बनाते हैं। यह सुनकर इन्द्र चिंतित हो जाते हैं। ऐसे में वह सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास जाते हैं। 

तब भगवान विष्णु का वामन रुप में अदिति के गर्भ से पैदा होते हैं। वक्त के साथ शिक्षा प्राप्त करके पिता की आज्ञा से भगवान वामन बलि के यज्ञ में जाते हैं। उस समय राजा बलि अंतिम यज्ञ करने जा रहे थे। 

राजा बलि से भगवान वामन भेट करते हैं। जब राजा बलि ने उनसे बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वो उनका अब कोई नहीं हैं। ऐसे में बलि ने कहा कि वो उनसे क्या चाहते हैं। तो भगवान वामन ने तीन पग भूमि मांगी। 

तीन पग भूमि की सुनकर राजा बलि ने उनसे और कुछ मांगने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि यह उनके लिए काफी हैं। जब इस बात का पता दैत्यगुरु शुक्राचार्य को लगा तो उन्होंने बलि को भगवान वामन को तीन पग भूमि देने से मना किया। लेकिन वह नहीं मानें।

वामन भगवान ने एक पग में सभी लोक तथा दूसरे पग में पृथ्वी और तीसरे पग के लिए कोई जगह नहीं बची। यह देख बलि काफी परेशान हुआ। अंत में राजा बलि ने स्वयं को उपस्थित करके कहा कि भगवन आप तीसरा पैर मेरे सर पर रखें। 

भगवान वामन अवतार ने तीसरा पैर बलि के सिर पर रखकर उनको सुतक लोक में जाने के लिए कहां। तब राजा बलि से प्रसन्न होकर सुतक लोक में दिन-रात अपने पास रहने के लिए कहां। जिसको भगवान ने स्वीकार कर लिया और राजा बलि के द्वारपाल बन गए। 

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