देवालय में दर्शन की उचित पद्धति
देवालय में दर्शन की उचित पद्धति
क्या आपको ज्ञात है कि यदि हम देवालय में दर्शन हेतु हमारे धर्मशास्त्र में बताए गए कृतियों का पालन करें तो देवता के दर्शन से हम अत्याधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं । इनमें से अधिकांश कृत्य का धर्मशास्त्रीय आधार है । इन कृतियों का विवरण आगे दिया गया है ।
१. देवालय-दर्शन के लिए जाने से पूर्व घर पर की जानेवाली आवश्यक प्रार्थना
‘हे ….. (देवता का नाम लें), आपकी ही दी हुई प्रेरणासे मैं आपके दर्शन के लिए आ रहा हूं । मुझे आपके भावपूर्ण दर्शन हों ।’
२. देवालय के निकट पहुंचने पर व्यक्त की जानेवाली कृतज्ञता
‘हे…..(देवता का नाम लें), आपने ही मुझे अपने दर्शन का अवसर प्रदान किया; मैं आपके चरणों में कृतज्ञ हूं ।’
३. देवालय में प्रवेश करने से पहले आवश्यक कृत्य
अ. शरीर पर धारण की हुई चर्म की वस्तुएं उतार दें ।
आ. देवालय के प्रांगण में जूते-चप्पल पहनकर न जाएं; उन्हें देवालयक्षेत्र के बाहर ही उतारें । यदि यह संभव न हो अथवा देवालय किसी मार्ग पर ही बना हो, तो देवता से क्षमा मांगने के उपरांत ही देवालय में प्रवेश करें । देवालय के प्रांगण अथवा देवालय के बाहर जूते-चप्पल उतारने ही पडें, तो देवता की दाहिनी ओर उतारें ।
इ. पैर धोने की व्यवस्था हो, तो पैर धो लें ।
ई. पैर धोने के उपरांत हाथ में जल लेकर ‘अपवित्रः पवित्रो वा…’, यह श्लोक जिन्हें आता है, वे उसका तीन बार उच्चारण कर अथवा पुण्डरीकाक्षाय नमः । ऐसा तीन बार कहकर अपने संपूर्ण शरीर पर तीन बार जल छिडकें ।
उ. गले के आस-पास कोई भी वस्त्र न लपेटें ।
ऊ. किसी देवालय में प्रवेश करने से पूर्व पुरुषोंद्वारा अंगरखा (शर्ट) उतारकर रखने की पद्धति हो, तो उसका पालन करें । (यद्यपि यह व्यावहारिक रूप से उचित न लगे, तब भी देवालय की सात्त्विकता बनाए रखने हेतु कुछ स्थानों पर ऐसी पद्धति है ।)
ए. देवालय में दर्शन हेतु जाते समय पुरुष भक्तजनों को टोपी तथा स्त्रीभक्तों को पल्लू से अपने सिर को ढकना चाहिए । इस संदर्भ में स्थानीय परंपरा का अनुकरण करें ।
ऐ. देवालय के प्रवेशद्वार एवं गरुडध्वज को नमस्कार करें ।
ओ. देवालय में प्रवेश करते समय करने योग्य प्रार्थना
‘हे ….. (देवताका नाम लें), मेरा मन न भटके, नामजप पर ही एकाग्र रहे । आपकी कृपा से मुझे यहां की सात्त्विकताका लाभ अधिकाधिक हो ।
‘हे ….. (देवताका नाम लें), आपकी कृपा से ही मैं देवालय में प्रवेश कर रहा / रही हूं । मुझे आपके दर्शनोंका लाभ प्राप्त हो । देवालय में मेरा नामजप अधिक हो । मुझे यहांकी सात्त्विकता प्राप्त हो ।
औ. देवालयकी सीढियां चढते समय दाहिने हाथकी उंगलियों से सीढी को स्पर्श कर हाथ आज्ञाचक्र पर रखें ।
देवालय की सीढियां कैसे चढनी चाहिए तथा देवालयकी प्रत्येक सीढी को स्पर्श करने का क्या महत्व है, यह जानने के लिए कृपया पढें, ‘देवालयकी सीढियां चढना’
ऊपर बताए गए कृतियों का शास्त्र जानने हेतु, कृपया पढें ‘देवालयमें प्रवेश करनेसे पूर्व आवश्यक कृत्य एवं उनका धर्मशास्त्र’
No comments