परशुराम के दो अमर शिष्य, स्वयं भगवान के विरुद्ध किया था युद्
शायद आप इस विषय को जानते हों या शायद नहीं, दरअसल पितामह भीष्म और दानवीर कर्ण दोनों ही महापराक्रमी, दोनों की मृत्यु उनके नियंत्रण में थी, जहाँ भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था तो कर्ण के कवच कुंडल के रहते उसकी मृत्यु असम्भव थी. और दोनों ही एक ही गुरु यानी भगवान परशुराम के शिष्य थे. और साथ ही अपने दोनों ही शिष्यों से भगवान परशुराम की बेहद नाराजगी.
दरअसल भीष्म और कर्ण दोनों ही परशुराम के अत्यंत प्रिय शिष्य थे, हज़ारों वर्षों की तपस्या से प्राप्त ज्ञान से उन्होंने अपने दोनों ही शिष्यों को अनन्त क्षमताओं का स्वामी बनाया और वह योग्यता दी जिससे संसार के किसी भी योद्धा का सामना कर सकें. पर कुछ पल ऐसे भी थे जब परशुरामजी को अपने इन्हीं शिष्यों के खिलाफ खड़ा होना पड़ा. भीष्म के खिलाफ तो उन्होंने युद्ध भी किया वजह थी अम्बा, लेकिन कर्ण से उन्होंने युद्ध नहीं किया, कर्ण परशुराम के बेहद प्रिय शिष्य थे या कहें पितामह भीष्म के बाद सर्वाधिक पराक्रमी, कर्ण ने झूठ बोलकर भगवान परशुराम से शिक्षा प्राप्त की, कि वो ब्राह्मण हैं इसलिए न चाहते हुए भी परशुराम ने उनको ज्ञान के विस्मरण का श्राप दिया.
और जब अर्जुन से सामना हुआ तो श्राप के फलस्वरूप कर्ण सबकुछ भूल गएs
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