किस देवता की, कितनी परिक्रमा करे. Kis Devta ki Kitni Parikrma Kre


जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान
की परिक्रमा जरुर लगाते है. पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यो की जाती है?
शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर
मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो,उसके मध्य बिंदु
से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है,यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ती हो जाती है.
परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल
की गति दक्षिणावर्ती होती है।बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के
ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है।जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है।
वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के
अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए
परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है।
इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है
कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है।सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।
1. - महिलाओं द्वारा "वटवृक्ष" की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है।
2. - "शिवजी" की आधी परिक्रमा की जाती है शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघे।
3. - "देवी मां" की एक परिक्रमा की जानी चाहिए।
4. - "श्रीगणेश जी और हनुमानजी" की तीन परिक्रमा करने का विधान है।गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है.गणेशजी केविराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
5. - "भगवान विष्णुजी" एवं उनके
सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं।
6. - सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं। हमें भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर "ॐ भास्कराय नमः" का जाप करना।
देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है। इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।
परिक्रमा के संबंध में नियम
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१. - परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए । साथ परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती है।
२. - परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें। जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें।
३.- उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ
परिक्रमा नहीं करनी चाहिये। इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है। इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है।
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