महाभारत में शिव ने पांडवो को दिया था श्राप

महाभारत युद्ध के अंतिम दिन दुर्योधन ने अश्वत्थामा को कौरव सेना का सेनापति नियुक्त किया था, क्योंकि वो अपनी आखरी सांसे ले रहा था। दुर्योधन अश्वत्थामा को निति पूर्वक या अनीति पूर्वक पांचो पांडवो का कटा हुआ शीश लाने का आदेश दिया था। अश्वत्थामा ने दुर्योधन को वचन दिया और बचे हुए कुछ सेना नायकों के साथ पांडवो के मृत्यु का षड्यंत्र रचने लगा। महाभारत के अंतिम दिन काल में वो कुछ ना कुछ चक़्कर जरूर चलाएगा ऐसा भगवान श्री कृष्ण जानते थे।
स्वयं श्री कृष्ण ने भगवान शिव की स्तुति की इस लिए महादेव तुरंत नंदी में सवार होकर उनके समक्ष प्रकट हुए। कृष्ण ने उनसे पांडवो की रक्षा का वरदान मांग लिया। भगवन शंकर हाथ में त्रिशूल धारण किये पांडवो के शिविर के बाहर उनकी रक्षा करने लगे। उस समय सभी पांडव उस समय शिविर के नजदीक नदी में स्नान कर रहे थे। मध्यरात्रि के समय अश्वत्थामा, कृपाचर्य, कृतवर्मा, आदि पांडवो के शिविर के पास आये परन्तु जब उन्होंने शिविर के बाहर शिवजी को पहरा देते देखा तो वे थोड़ी देर के लिए दर गए। फिर उन्होंने भी महादेव की स्तुति करना आरम्भ कर दी और शिवजी ने प्रसन्न हो कर अश्वत्थामा से वरदान मांगने को कहा। अश्वत्थामा ने शक्तिशाली तलवार और पांडवो के शिविर में जाने की आज्ञा मांगी। अश्वत्थामा दोनों साथियो के साथ पांडवो के शिविर में गया और धृष्टद्युम्न के साथ पांडवो के पुत्रों का वध कर दिया तथा तीनो पांडवो के पुत्रों के कटे हुए शीश को लेकर वापस लोट गए। जब ये खबर पांडवो ने सुनी तो वे शोक में आ गए तथा अपनी मर्यादा भूलकर भगवान शिव से युद्ध करने लगे। लेकिन भगवान शिव पर चलाये हुए अस्त्र विलीन हो जाते थे। पांडव भगवान शिव के शरण में थे, इस कारण शिवजी ने पांडवो पर प्रहार नहीं किया। लेकिन शिवजी ने श्राप दिया की कलयुग में इस अपराध की सजा पांडवो को भुगतनी पड़ेगी। इतना कह कर वो अदृश्य हो गए।

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