नवरात्र कल से: शुभ मुहूर्त में करें घट स्थापना, ये है संपूर्ण विधि

नवरात्र कल से: शुभ मुहूर्त में करें घट स्थापना, ये है संपूर्ण विधि

मां शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र 21 सितंबर, गुरुवार से शुरू हो रहा है, जो 29 सितंबर, शुक्रवार तक रहेगा। नवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट (कलश) की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्र उत्सव का प्रारंभ होता है। माता दुर्गा व घट स्थापना की विधि इस प्रकार हैं-

ये है घट स्थापना की विधि

पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।

मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु की पूजा करें। नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति की पूजा करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

ये हैं घट स्थापना के शुभ मुहूर्त

सुबह 07:00 से 08:00 तक

सुबह 10:50 से 11:55 तक

सुबह 11:55 से 12:43 तक

दोपहर 12:43 से 02:10 तक

दोपहर 02:10 से 03:20 तक

शाम 04:50 से 6:20 तक

ध्यान रखें ये 4 बातें

1. नवरात्र में माता दुर्गा के सामने नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। माता के सामने एक एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।

2. मान्यता के अनुसार, मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है-

दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।

अर्थात- घी का दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाईं ओर रखना चाहिए।

3. अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाड़ना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।

4. यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।

इस आसान विधि से करें मां दुर्गा की आरती

हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म-कांड के बाद भगवान की आरती उतारने का विधान है। भगवान की आरती उतारने के भी कुछ विशेष नियम होते हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से। आरती की बत्तियाँ 1, 5, 7 अर्थात विषम संख्या में ही बनाकर आरती की जानी चाहिए।

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यह तो हम सभी जानते हैं कि नवरात्रि का हर दिन खास मां दुर्गा के नौ रूपों में एक देवी का होता है। दुर्गा मां के भक्त नौ देवियों के अनुसार ही पूजा और अराधना कर उन्हें खुश करने में जुट जाते हैं। जान लें कि माता को चढ़ाया गया प्रसाद भी आपकी पूजा को सफल करने में अहम भूमिका निभाता है।

ध्यान रखें कि नौ देवियों का एक पसंदीदा खाने का पदार्थ है और इसे अगर उस दिन प्रसाद रूप में चढ़ाया गया तो हर भक्तों की मनोकामनाएं ज़रूर से पूरी हो सकती हैं।

• शैलपुत्री

माता शैलपुत्री को हिमालय पुत्री भी कहते हैं। बता दें कि इन्हें घी बेहद प्रिय है, इसलिए प्रसाद के रूप में इस दिन देवी को घी ज़रूर से चढ़ाना चाहिए। यही नहीं, माता के चरणों पर भी घी का लेप लगाएं ताकि इससे आने वाले समय में आप हर गंभीर बीमारी से दूर रहें। यही नहीं ऐसा करने से आप व आपके परिवार के सदस्य की कोई भी लंबी बीमारी ठीक हो सकती है।

• ब्रह्मचारिणी –

वहीं, दुर्गा का दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी को माता पार्वती के रूप से भी जाना जाता है। कहते हैं कि सती होने के बाद मां दुर्गा ने ब्रह्मचारिणी के रूप में ही भगवान शिव को दुबारा अपने पति के रूप में पाया था। कमंडलधारिणी मां को चीनी का भोग लगाना ना भूलें क्योंकि इससे परिवार में अकाल मृत्यु की संभावना खत्म हो जाती है।

• चंद्रघंटा –

सिर पर आधी चंद्रमा विराजित मां चंद्रघंटा दुर्गा का तीसरा रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन्हें दूध बहुत पसंद है, इसलिए कहते हैं कि अगर नवरात्रि के तीसरे दिन दूध या दूध से बनी वस्तुएं-मिठाई प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाए या दान में दी जाए, तो माता अपने भक्तों से खुश हो जाती हैं।

• कूष्मांडा –

बता दें कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। लोगों की मानें तो माता कूष्मांडा को मालपुआ बहुत पसंद है, इसलिए इस दिन खास कर के प्रसाद के रूप में अगर आप मालपुआ चढ़ाते हैं और साथ ही दूसरों को खिलाते हैं तो आपकी बुद्धि ज़रूर तेज हो जाएगी। यही नहीं, माता आपकी हर मनोकामनाओं को पूरा करेगी।

• स्कंदमाता –

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि स्कंदमाता की गोद में उनके पुत्र कार्तिकेय बैठे होते हैं। नवरात्रि के पांचवें दिन माता स्कंदरमाता के साथ साथ उनके बेटे कार्तिकेय की भी पूजा होती है। बता दें कि पका हुआ केला देवी को बहुत प्रिय माना जाता है, इसलिए इस खास दिन अपनी कोई भी मनोकामना के साथ केले का प्रसाद ज़रूर चढ़ाएं और गरीबों में दान भी करें। इस प्रक्रिया से आपको मन चाहा फल ज़रूर मिलेगा और साथ ही सभी रोग दूर हो जाएंगे।

• देवी कात्यायनी –

मां दुर्गा के छठे रूप यानि कि देवी कात्यायनी को शहद बहुत पसंद है इसलिए प्रसाद के तौर पर इस दिन शहद माता को ज़रूर से चढ़ाएं या फिर शहद से बनी किसी अन्य खाद्य वस्तु का भी भोग आप लगा सकते हैं। कहते हैं कि ऐसा करने से आपको देवी की कृपा मिलती है और साथ ही अभूतपूर्व खूबसूरती और आकर्षण भी प्राप्त होता है।

• कालरात्रि –

मां दुर्गा का रूप कालरात्रि को प्रलयंकारी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि देवी अगर अपने भक्त से खुश हो जाएं तो उसके जीवन से सभी प्रकार के दुखों का नाश हो जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मां काली को गुड़ बहुत प्रिय है, इसलिए इनकी कृपा अगर आपको प्राप्त करनी है तो इस दिन गुड़ या इससे बना भोग प्रसाद के रूप में ज़रूर से चढ़ाएं और साथ ही गुड़ का दान भी करें।

• महागौरी –

बात अगर नवरात्रि की अष्ठमी की करें तो इस दिन मां गौरी की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती है। इस खास दिन माता को नारियल का प्रसाद चढ़ाना व ब्राह्मणों को इसका दान भी करें, ऐसा करने से आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएगी।

• सिद्धिदात्री –

नवमी यानि कि नवरात्रि के आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। ध्यान रहे कि सफेद तिल इनका पसंदीदा खाद्य वस्तु माना जाता है, इसलिए इस दिन की पूजा सफेद तिल और इससे बनी खाद्य वस्तुओं का भोग भी ज़रूर से लगाएं। जान लें कि मां सिद्धिदात्री सर्वमनोकामना पूरी करने वाली मानी जाती है।

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