Load Vishnu भगवान जगन्नाथ का व्रज से अटूट सम्बन्ध*
*भगवान जगन्नाथ का व्रज से अटूट सम्बन्ध*
भगवान जगन्नाथ का व्रज से अटूट सम्बन्ध है। एक बार द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि में सोते समय ‘ *हा राधे! हा राधे!* ’ कहकर क्रन्दन करने लगे। रुक्मिणी आदि रानियों ने सुबह जब उनसे रात्रि में सोते समय इस प्रकार क्रंदन करने का कारण पूछा तो भगवान ने ‘मुझे तो कुछ याद नहीं’–ऐसा कहकर बात टाल दी। सभी रानियां आपस में कहने लगीं–'हम सब सोलह हजार रानियां कुल, शील, रूप, गुण में किसी से कम नहीं हैं फिर भी हमारे प्राणनाथ श्रीकृष्ण राधा नाम की गोपकन्या में इतने आसक्त क्यों हैं? माता रोहिणी चूंकि व्रज में उनके साथ रही हैं अत: उनसे पूछने पर इसका सही कारण पता चल जाएगा।’
दूसरे दिन रुक्मिणी आदि पटरानियों व अन्य रानियों ने माता रोहिणी से प्रार्थना की कि वे द्वारकानाथ की व्रजलीला और गोपी-प्रेम की कथा सुनाएं। माता रोहिणीजी ने सुभद्राजी को द्वार पर नियुक्त कर दिया और आज्ञा दी कि किसी भी पुरुष का प्रवेश आज अन्त:पुर में निषिद्ध है, चाहें वह स्वयं श्रीकृष्ण ही क्यों न हों?
द्वार बन्द करके वे रानियों को भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के अलौकिक प्रेम की कथा सुनाने लगीं।
जैसे ही रोहिणीजी ने व्रज की माधुर्यलीला का वर्णन शुरु किया, राजसभा में बैठे श्रीकृष्ण-बलराम दोनों भाई चंचल हो उठे और वहां से चलकर भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ अंत:पुर में आ गए। उस समय श्रीकृष्ण-बलराम को अंत:पुर में देखकर सुभद्राजी ने उनसे इस समय आने का कारण पूछा तो भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा–
भगवान जगन्नाथ का व्रज से अटूट सम्बन्ध है। एक बार द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि में सोते समय ‘ *हा राधे! हा राधे!* ’ कहकर क्रन्दन करने लगे। रुक्मिणी आदि रानियों ने सुबह जब उनसे रात्रि में सोते समय इस प्रकार क्रंदन करने का कारण पूछा तो भगवान ने ‘मुझे तो कुछ याद नहीं’–ऐसा कहकर बात टाल दी। सभी रानियां आपस में कहने लगीं–'हम सब सोलह हजार रानियां कुल, शील, रूप, गुण में किसी से कम नहीं हैं फिर भी हमारे प्राणनाथ श्रीकृष्ण राधा नाम की गोपकन्या में इतने आसक्त क्यों हैं? माता रोहिणी चूंकि व्रज में उनके साथ रही हैं अत: उनसे पूछने पर इसका सही कारण पता चल जाएगा।’
दूसरे दिन रुक्मिणी आदि पटरानियों व अन्य रानियों ने माता रोहिणी से प्रार्थना की कि वे द्वारकानाथ की व्रजलीला और गोपी-प्रेम की कथा सुनाएं। माता रोहिणीजी ने सुभद्राजी को द्वार पर नियुक्त कर दिया और आज्ञा दी कि किसी भी पुरुष का प्रवेश आज अन्त:पुर में निषिद्ध है, चाहें वह स्वयं श्रीकृष्ण ही क्यों न हों?
द्वार बन्द करके वे रानियों को भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के अलौकिक प्रेम की कथा सुनाने लगीं।
जैसे ही रोहिणीजी ने व्रज की माधुर्यलीला का वर्णन शुरु किया, राजसभा में बैठे श्रीकृष्ण-बलराम दोनों भाई चंचल हो उठे और वहां से चलकर भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ अंत:पुर में आ गए। उस समय श्रीकृष्ण-बलराम को अंत:पुर में देखकर सुभद्राजी ने उनसे इस समय आने का कारण पूछा तो भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा–
*‘व्रजलीला कथा का ऐसा प्रभाव है कि हम जहां कभी भी और जिस किसी भी अवस्था में हों, वह हमें वहीं से आकर्षित करके कथास्थल पर खींच लाता है।’*
सुभद्राजी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया, लेकिन द्वार पर खड़े-ही-खड़े उन्होंने रोहिणीजी द्वारा सुनाई जा रही अपनी व्रज की मंगलमयी रासविहार की कथाओं को सुना तो उससे दोनों भाई प्रेमानन्द में विह्वल हो गए और आंखों से प्रेमाश्रु बहकर गले व वक्षस्थल तक को भिगौने लगे। उन्हें देखकर सुभद्राजी को भी महाभावास्था प्राप्त हो गयी और उन तीनों भाई-बहिनों के शरीर ऐसे द्रवित होने लगे जैसे मोम की प्रतिमाएं पिघल जाती हैं। उनके नेत्रों के स्थान पर सिर्फ नेत्रगोलक ही रह गए। हाथ-पैरों के पंजे लुप्त हो गए। मुंह, नासिका के छिद्र आदि अदृश्य हो गए–
*स्व चरितम् स्मर स्मर दारुभूतो मुरारि*
अर्थात् अपनी व्रज-प्रेम की रसमयी लीलाओं को सुनकर प्रेम के वशीभूत वे काष्ठ की तरह जड़वत् हो गए–निश्चल, स्पन्दनरहित। भगवान श्रीकृष्ण के आयुध श्रीसुदर्शनजी भी पिघलकर लम्बे आकार के हो गए।
उसी समय देवर्षि नारद भगवान के दर्शन के लिए द्वारकाधाम में पधारे। देवर्षि नारद की तो सब जगह अबाधगति है। अत: जब वे अंत:पुर में पहुंचे और वहां उन्होंने भगवान के अद्भुत स्वरूप के दर्शन किए तो कुछ क्षण के लिए वे भी स्तभित रह गए। नारदजी ने श्रीकृष्ण-बलराम-सुभद्रा के प्रेम से द्रवित अंगों को देखा तो संसार के कल्याण के लिए भगवान से प्रेमरूप स्वरूप में ही रहने की प्रार्थना की। भगवान ने वरदान देते हुए कहा– *कलियुग* *में* *हम* *इसी रूप में रहेंगे।’*
यही स्वरूप है भगवान जगन्नाथ का जो पुरी में विराजमान हैं।
यही स्वरूप है भगवान जगन्नाथ का जो पुरी में विराजमान हैं।
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