आज का विषय उतना रुचिकर तो नहीं है, पर साधकों के लिए अत्यावश्यक है ।

आज का विषय उतना रुचिकर तो नहीं है, पर साधकों के लिए अत्यावश्यक है ।
सावधानी से विचार करो कि तुम्हारा आश्रय क्या है ? तुम किसके आश्रय में जी रहे हो ? जीवन में छोटा बड़ा संकट आ जाने पर तुम्हारा ध्यान सबसे पहले किसकी ओर जाता है ?
नोट करो कि तुम साधकों में बैठ कर कितनी ही भगवान की बात करो, तुम्हारा आश्रय ही बताता है कि तुम्हारा भगवान कौन है ?
जो संकट आने पर धन की ओर ताकता है, उसने धन को भगवान माना है । जो परिवार की ओर ताकता है, उसकी दृष्टि में परिवार ही भगवान है ।
जो सत्ताबल, बाहुबल, जातिबल या किसी अन्य बल का आश्रय ग्रहण करता है, वही उसका माना हुआ भगवान है ।
ध्यान दो कि सहारा लेने वाले का बल, सहारा देने वाले के बल पर निर्भर करता है । जिसने न टिकने वाली मिथ्या सत्ता को आश्रय बनाया है, वो खुद कब तक टिकेगा ?
क्यों न तुम सब बलों के एकमात्र आश्रय, भगवान को ही अपना आश्रय बना लो ? यदि तुमने आज ही संकल्प कर लिया, कि मैं सब पर आस-भरोसा छोड़कर, एक भगवान के ही भरोसे रहूँगा, तो बचे हुए जीवन में, तुम्हारी हर सूली, शूलमात्र न रह जाए तो कहना ।
तो कह दो -
"श्री राम सहारा तेरा है,
मेरे राम सहारा तेरा है ।
मेरा और सहारा कोई नहीं,
भगवान सहारा तेरा है ॥"

No comments

Powered by Blogger.