सत्य से दोस्ती कठिन ,Friendship with truth is difficult


जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल है और झूठ के सामने झुकना सरल। ऐसी उलटबांसी क्यों है? उलटबांसी जरा भी नहीं है; सिर्फ तुम्हारे विचार में जरा सी चूक हो गई है, इसलिए उलटबांसी दिखाई पड़ रही है। चूक बहुत छोटी है, शायद एकदम से दिखाई न पड़े, थोड़ी खुर्दबीन लेकर देखोगे तो दिखाई पड़ेगी।


सत्य के सामने झुकना पड़ता है; झूठ के सामने झुकना ही नहीं पड़ता, झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और इसीलिए झूठ से दोस्ती आसान है, क्योंकि झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और सत्य से दोस्ती कठिन है, क्योंकि सत्य के सामने तुम्हें झुकना पड़ता है। अंधा अंधेरे से दोस्ती कर सकता है, क्योंकि अंधेरा आंखें चाहिए ऐसी मांग नहीं करता, लेकिन अंधा प्रकाश से दोस्ती नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रकाश से दोस्ती के लिए पहले तो आंखें चाहिए। अंधा अमावस की रात के साथ तो तल्लीन हो सकता है, मगर पूर्णिमा की रात के साथ बेचैन हो जाएगा। पूर्णिमा की रात उसे उसके अंधेपन की याद दिलाएगी; अमावस की रात अंधेपन को भुलाएगी, याद नहीं दिलाएगी।

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