जब भगवान कृष्ण ने दिया कर्ण की क्षमता का प्रमाण
जब भगवान कृष्ण ने दिया कर्ण की क्षमता का प्रमाण
जैसा कि सब जानते हैं सदियों पूर्व महाभारत का धर्म युद्ध लड़ा गया था और एक से बढ़कर एक बलशाली योद्धाओं ने युद्ध में अपना पराक्रम दिखाया था. धर्म और अधर्म के बीच हुए इस युद्ध के अंतिम दिनों में जब कौरव पक्ष के सभी महारथी परास्त हो चुके थे तब युद्धभूमि में कौरव पक्ष के सेनापति के रूप में दुर्योधन ने अपने परम मित्र कर्ण को उतारा. कर्ण जो अपने साथ हुए प्रतिशोध की आग में जल रहा था,
युद्ध मे पराक्रम दिखाना शुरू किया.
युद्ध मे पराक्रम दिखाना शुरू किया.
धर्म की जीत में बाधा बने या कहें दुर्योधन की हार को बचाने कर्ण युद्ध मे अड़ कर रह गया. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कर्ण को विराट रूप के दर्शन दिए और उसकी गलतियों से वाकिफ कराया. कर्ण ने अपनी हर गलती स्वीकार की और अपनी मृत्यु को भी स्वीकार कर लिया लेकिन साथ ही रखा एक सवाल, कि क्या कभी दुनिया के सामने मेरी क्षमता उजागर नहीं होगी, क्या दुनिया कभी नहीं जान पाएगी मेरी सामर्थ्य को?
जिसके जबाब में भगवान ने कहा तुम्हारे कवच कुंडल छीन लिए गए, तुम्हे अपनी विद्या का विस्मरण हो गया और तुम्हारे रथ का पहिया धरती में फंसा है और तुम उसे निकलने के प्रयास में लगे हो, ऐसे अवसर का लाभ उठाकर तुम्हें मारा जा रहा है कर्ण, और क्या प्रमाण चाहिए तुम्हारे सामर्थ्य का और किस तरह सिद्ध हो सकती है तुम्हारी क्षमता.
और कुछ ही देर में महावीर, अंगराज कर्ण खुशी खुशी प्राण त्याग चुके थे. आज और आने वाले युगों युगों तक दुनिया जानेगी दानवीर कर्ण के सामर्थ्य को.
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