अमृत कथा: श्री राधा जी की अँगूठी की


श्री कृष्ण की अनामिका अंगुली में एक अँगूठी नित्य झिलमिल करती रहती है वो अँगूठी बड़ी अद्भुत है वो नीले रंग का नग की अँगूठी पारदर्शी है उसे थोड़ा पास से देखने से कितनी ही अनंततरंगो से युक्त श्री राधारानी की मुस्कुराती हुई छवि दिखती है।

इस अँगूठी की एक अद्भुत बात और है श्री राधा का जो भी स्वरूप सिंगार पल पल लगता है पल पल सुंदरता को प्राप्त होता .है वो सब उस अँगूठी में दिखता रहता है एक एक पल का सिंगार हाव भाव उस अँगूठी में दिखता रहता है जिसे श्यामसुंदर नित्य निहारते र्है, आनंद पाते है ।

वो अद्भुत अँगूठी श्री राधा छवि की श्यामसुंदर ने चित्रा सखी से पायी थी ।

पर एक दिन सब मंजरिया यह योजना बनाती है कि किस तरह यह अँगूठी श्री श्यामसुंदर से ले ली जाए

तब सब मंजरियाँ योजना बनाती हैं कि श्री लासिका मंजरी को निकुंज द्वार पर खड़ी कर दी जाए और जैसे ही नीलमणि अंदर प्रवेश करने की कोशिश करे तो अंदर घुसने ना दिया जाए जब तक उनसे उनकी राधा अँगूठी ना मिल जाए ।

तभी लासिका मंजरी निकुंज द्वार पर खड़ी कर दी जैसे ही नीलमणि अंदर निकुंज पर प्रवेश करने लगे तभी लासिका मंजरी बोली
" अरे भाई कौन हो तुम कहाँ जा रहे हो ?
यह सुन श्याम के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी !

" ऐसे कैसे अंदर जा रहे हो " कौन हो तुम..?
श्यामसुंदर बोले " अरी कैसी बावरी हो गयी मोहे ना जाने तू "
मोहे मज़ाक़ पसंद नहीं है "
अंदर जाने दे नहीं तो मेरी श्यामा विरह में डूब जाएगी ।

मंजरी बोली " हम कैसे मान ले आप ही श्यामसुंदर हो, श्यामसुंदर तो महाप्रेम करुणामय सिंधु है और हमारी राधा के प्राण है ।
और हमने सुना है उनका भेष बना आज कल निकुंज में बहुत श्यामसुंदर घूम रहे है छलिया भेष में घूम रहे ।

तभी श्यामसुंदर ताली मार कर बोले " बस यही सत्यापित करना है किे हम असली है तो
रुको " अभी मैं अपने सखागण मधुमंगल, श्री दामा को बुलाता हूँ वो यह बता देंगे के हम ही असली श्यामसुंदर है, हमारा मित्र मधुमंगल कभी झूठ नहीं बोलेगा ।

वो तो ब्राह्मण है बस मधुमंगल का नाम सुनते ही मंजरी और अंदर निकुंज में बैठी सब मंजरिया ज़ोर से अट्ठास कर हँसने लगी ।

मंजरी बोली " ओह हो वो मधुमंगल जो दो लड्डू के लिए अपना कहा वचन भी झूठा कर दे ।
अरे मधुमंगल ब्राह्मण तो लड्डू का भूखा है लड्डू दो और जो बुलवाना है बुलवा लो हम उनपर भरोसा नहीं करेंगी ।

तभी श्याम बोले चलो अच्छा " तो फिर हम श्री राधा रानी की भाई श्री दामा को बुला लाते है अगर वो कहदे हम असली है तब जाने देना अंदर
मंजरी बोली - हाँ अगर राजकुँवर श्री दामा हमारी स्वामिनी के भाई बोले के आप असली हो तब मान लेंगे ।

श्याम सुंदर बोले तब ठीक है
" तभी मंजरी बोली " परंतु यह हम कैसे मान ले के आप असली श्री दामा लेकर आओगे वो भी तो आप नक़ली भेष बना ला सकते हो आपने कितनी बार श्री दामा का नक़ली भेष बनाया है ।
नहीं नहीं हमें भरोसा नहीं
तभी द्वार पर खड़ी लासिका मंजरी बोली,

श्याम बोले चलो ना करो भरोसा मेरे मित्र पर
" तुम बोलो तो अपनी यशोदा माँ को बुला लाऊँ कि मैं ही असली हूँ।

लासिका मंजरी बोली " सुन रे तेरी यशोदा माँ बड़ी भोली है उसने पूतना जैसी राक्षिणी को अंदर घुसा के श्याम को ही उसकी गोद में दे दिया था,
तब तू तो उनको भी बातों में लगा लेगा और बुलवा देगा के तू असली है।

तब श्यामसुंदर बोले यह मानेगी नही और अंदर मेरी राधारानी विरह में होगी तभी श्याम ने अपनी अँगूठी देखी जो पहनी थी ।

वो अँगूठी ऐसी है जिसमे श्री राधा रानी जी  के प्रति पल के भाव का, श्रृंगार  का दर्शन होता है ।

तब श्याम सुंदर बोले " अच्छा सुन री यह अँगूठी तो एकदम सत्य कहेगी यह अँगूठी तो केवल असली श्याम के पास है यह अँगूठी चित्रा ने मुझे दीं थी  यह अँगूठी देख ले जिसमें मेरी स्वामिनी दिखती है ।

लासिका मंजरी बोली " बस यही तो हम चाहते है "

बस श्याम वो अँगूठी मंजरी को दिखाता है मंजरी जब अँगूठी में देखती है तब उन्हें स्वामिनी   दिखती है के वो अत्यंत विरह में है ।

मंजरी तभी वो अँगूठी अपनी चुनरी में बाँधती है और जल्दी जल्दी अंदर भेजती है ।
तभी श्याम चिंता करते है " अब अँगूठी वापस कैसे लूँ पर जैसे ही प्रवेश किया स्वामिनी को विरह में देखा " स्वामिनी के हृदय पर कमल की माला पड़ी थीं जो विरह से सूख गयी थी, श्याम ने जैसे ही महारानी को देखा सब भूल गए अँगूठी को और राधाचरण में गिर गए और दोनो परस्पर प्रेमअश्रु बहाने लगे।

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