विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?*


आइए इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं
जरा वह देखें ।
1-  _*गुरूग्निद्विर्जातिनां वर्णाणां ब्रह्मणो गुरूः।*_
_*पतिरेकोगुरू स्त्रीणां सर्वस्याम्यगतो गुरूः।।*_
_(पदम पुं . स्वर्ग खं 40-75)_
अर्थ : *अग्नि ब्राह्मणो का गुरू है।*
*अन्य वर्णो का ब्राह्मण गुरू है।*
*एक मात्र उनका पति ही स्त्रीयों का गुरू है*
*तथा अतिथि सब का गुरू है।*
2-  _*पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च।*_
_*सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।।*_
_(ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11)
_
अर्थ > *स्त्रीयों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।।*
3-  _*भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च।*_
_*तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।।*_
(स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48)
अर्थ > *स्त्रीयों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्री को पृथक कुछ करना अपेक्षित नहीं है।*
4-  _*दुःशीलो दुर्भगो वृध्दो जड़ो रोग्यधनोSपि वा।*_
_*पतिः स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।।*_
(श्रीमद् भा. 10-29-25)
अर्थ > *पतिव्रता स्त्री को पति के अलावा और किसी को पूजना नहीं चाहिए, चाहे पति बुरे स्वभाव वाला हो, भाग्यहीन, वृध्द, मुर्ख, रोगी या निर्धन हो। पर वह पातकी न होना चाहिए।*
वेदों, पुराणों, भागवत आदि शास्त्रो ने स्त्री को बाहर का गुरू न करने के लिए कहा यह शास्त्रों के उपरोक्त श्लोकों से ज्ञात होता है। *आज हर स्त्री बाहर के गुरूओं के पीछे पागलों की तरह पड जाती हैं तथा उनके पीछे अपने पति की कड़े परिश्रम की कमाई लुटाती फिरती हैं।*
*आज सत्संग* *आध्यात्मिक ज्ञान की जगह न होकर व्यापारिक स्थल* बन गया है।
इसलिए सावधान हो जाइये.
*गुरू करने से पहले देख लो कि वह गुरू जिन शास्त्रों का सहारा लेकर हमें ज्ञान दे रहा है, वह स्वयं उस पर कितना चल रहा है?*
हिन्दू धर्म में पति के रहते किसी को गुरु बनाने की इजाजत नहीं है।
आप कोई भी समागम देख लो,
औरतो ने ही भीड़ लगाई हुई है।
परिवार जाए भाड़ में।
बाबा की सेवा करके मोक्ष प्राप्त करना है बस..!!
खुद फैसला कीजिये।
बदलाव कहाँ चहिये।
 *जय हो सनातन धर्म की*

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