64 कलाओं में पारंगत थे श्रीकृष्ण, क्या आप जानते हैं इनके बारे में...


भगवान श्रीकृण्ण ने कभी अपनी बाल लीलाओं से ब्रज वासियों को अपना भक्त बनाया तो कभी रास रचाकर गोपियों को रिझाया। वे भले ही नटखट कान्हा के रूप में अपने भक्तों के दिलों में रहते हों लेकिन उनका एक और रूप भी है और वह है उनका विराट स्वरूप। जो संपूर्ण है, जिसे चर, अचर, आकाश से लेकर पाताल तक सभी के बारे में पूर्ण जानकारी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीकृण्ण गुरू संदीपनी के आश्रम में गए तो उन्होंने मात्र 64 दिनों में ये 64 विधाएं सीख लीं थीं, वे 64 कलाओं के ज्ञाता थे। आप जरूर जानना चाहेंगे भगवान श्री कृण्ण की इन 64 कलाओं के बारे में....
निम्न 64 कलाओं में पारंगत थे श्रीकृष्ण :-
1- नृत्य - नाचना
2- वाद्य- तरह-तरह के बाजे बजाना
3- गायन विद्या - गायकी।
4- नाट्य - तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय
5- इंद्रजाल- जादूगरी
6- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना
7- सुगंधित चीजें- इत्र, तेल आदि बनाना
8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना
9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या
10- बच्चों के खेल
11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या
12- मन्त्रविद्या
13- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना
14- रत्नों को अलग-अलग प्रकार के आकारों में काटना
15- कई प्रकार के मातृका यन्त्र बनाना
16- सांकेतिक भाषा बनाना
17- जल को बांधना।
18- बेल-बूटे बनाना
19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना। (देव पूजन या अन्य शुभ मौकों पर कई रंगों से रंगे चावल, जौ आदि चीजों और फूलों को तरह-तरह से सजाना)
20- फूलों की सेज बनाना।
21- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना दृ इस कला के जरिए तोता-मैना की तरह बोलना या उनको बोल सिखाए जाते हैं।
22- वृक्षों की चिकित्सा
23- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति
24- उच्चाटन की विधि
25- घर आदि बनाने की कारीगरी
26- गलीचे, दरी आदि बनाना
27- बढ़ई की कारीगरी
28- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना यानी आसन, कुर्सी, पलंग आदि को बेंत आदि चीजों से बनाना।
29- तरह-तरह खाने की चीजें बनाना यानी कई तरह सब्जी, रस, मीठे पकवान, कड़ी आदि बनाने की कला।
30- हाथ की फूर्ती के काम
31- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना
32- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना
33- द्यू्त क्रीड़ा
34- समस्त छन्दों का ज्ञान
35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या
36- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण
37- कपड़े और गहने बनाना
38- हार-माला आदि बनाना
39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना यानी ऐसे मंत्रों का प्रयोग या फिर जड़ी-बुटियों को मिलाकर ऐसी चीजें या औषधि बनाना जिससे शत्रु कमजोर हो या नुकसान उठाए।
40-कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना दृ स्त्रियों की चोटी पर सजाने के लिए गहनों का रूप देकर फूलों को गूंथना।
41- कठपुतली बनाना, नाचना
42- प्रतिमा आदि बनाना
43- पहेलियां बूझना
44- सूई का काम यानी कपड़ों की सिलाई, रफू, कसीदाकारी व मोजे, बनियान या कच्छे बुनना।
45 - बालों की सफाई का कौशल
46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना
47- कई देशों की भाषा का ज्ञान
48 - मलेच्छ-काव्यों का समझ लेना दृ ऐसे संकेतों को लिखने व समझने की कला जो उसे जानने वाला ही समझ सके।
49 - सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा
50 - सोना-चांदी आदि बना लेना
51 - मणियों के रंग को पहचानना
52- खानों की पहचान
53- चित्रकारी
54- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना
55- शय्या-रचना
56- मणियों की फर्श बनाना यानी घर के फर्श के कुछ हिस्से में मोती, रत्नों से जड़ना।
57- कूटनीति
58- ग्रंथों को पढ़ाने की चातुराई
59- नई-नई बातें निकालना
60- समस्यापूर्ति करना
61- समस्त कोशों का ज्ञान
62- मन में कटक रचना करना यानी किसी श्लोक आदि में छूटे पद या चरण को मन से पूरा करना।
63-छल से काम निकालना
64- कानों के पत्तों की रचना करना यानी शंख, हाथीदांत सहित कई तरह के कान के गहने तैयार करना।

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