तुलसी विवाह 2017

वर्ष 2017 कम तुलसी विवाह 1 नवंबर 2017, बुधवार के दिन किया जाएगा।
“तुलसी विवाह पूजा का समय”
द्वादशी तिथि 31 अक्टूबर 2017, मंगलवार 18:55 पर प्रारंभ होगी। जो 1 नवंबर 2017, बुधवार 17:56 पर समाप्त होगी।


तुलसी विवाह का महत्व Importance of Tulasi Vivah

पुराणों में बताया गया है की तुलसी विवाह Tulsi Vivaha करने से भगवान विष्णु बहुत खुश होते है | क्यों की तुलसी भागवान श्री विष्णु को बहुत पिर्य थी | कहा गया है की विष्णु भगवान को तुलसी अर्पित किये बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है | हिन्दू धर्म में कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री विष्णु जी और तुलसी जी का विवाह कराया जाता है क्यों की दोनों को पति पत्नी का दर्जा दिया गया है |
एकादशी के दिन पुण्य प्राप्त करने के लिए विष्णु भगवान या शालिग्राम पत्थर से तुलसी का विवाह करवाना चाहिय | शास्त्रो के अनुसार जीवन में एक बार तुलसी का विवाह अवस्य करना चाहिय | क्योकि तुलसी की सेवा करना महान और पुण्य माना जाता है | तुलसी का विवाह विष्णु के प्रतीक शालिग्राम से किया जाता है | तुलसा जी व शालिग्राम जी का विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान एकादशी को किया जाता है | देवउठनी एकादशी के दीन भगवान श्री विष्णु क्षीरसागर से आते है देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है

तुलसी विवाह से लाभ Benefits from Tulsi Vivah


देवउठनी एकादशी Devuthani Ekadashi के दिन तुलसी विवाह Tulsi Vivaha या पूर्ण श्रद्धा से तुलसी की पूजा करने विवाह का योग और उत्तम विवाह होता है |

देवउठनी एकादशी Devuthani Ekadashi के दिन तुलसी विवाह से या तुलसी पूजा से कोई भो जातक वियोग नहीं होता है

कहा गाय है की जिन के कन्या नहीं है उन्हें तुलसी का विवाह करना चाहिए क्योकि ऐसा करने से कन्यादान का पूर्ण फल मिलता है |

देवउठनी एकादशी Devuthani Ekadashi के दिन तुलसी विवाह करने से सभी सुख मिलते है और कोई संकट नही आता है

देवउठनी एकादशी Devuthani Ekadashi के दिन तुलसी विवाह से भगवान श्री विष्णु एवं तुलसी माँ की पूर्ण कृपा मिलती है।और उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है

तुलसी विवाह की कथा Tulsi Vivah Katha



शास्त्रों के अनुसार देवउठनी एकादशी Devuthani Ekadashi या प्रबोधनी एकादशी Prbodhani Ekadashi को कोई जातक तुलसी Tulsi का विवाह करवाते है तो विष्णु Vishanu भगवान और तुलसी माँ की पूर्ण कृपा होती है | जिसके कारण घर से रोग, परिवार में प्रेम अच्छे कार्यो में सफलता मिलती है | जातक कथाओ के अनुसार माता तुलसी का जन्म राक्षस कुल में हुआ था | उस वक्त उसका नाम वृंदा था | बाल्य काल से वृंदा भगवान श्रीकृष्ण की भक्त थी | विवाह योग्य होने पर वृंदा का विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से किया गया था | राज जलंधर जो समुद्र मंथन से पैदा हुआ था | कहा जाता है की वृंदा पतिव्रता स्त्री थी | एक बार की बात है की देवताओ और दानवो में भयंकर युद्ध हुआ | जब वृंदा ने कहा की में आपकी सलामती के लिए एकादशी की पूजा करुँगी और आप जब तक वापिस नहीं आयेंगे तब तक इस व्रत का संकल्प नहीं छोडूंगी | इस वजह से देवताओ में खलबली मच गई | तब देवताओ को भगवन विष्णु का ध्यान आया और वो उनके पास गए और जीत के लिए गुहार करने लगे | तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा की वृंदा मेरी परम भक्त है | और जब तक वृंदा का अनुष्ठान नहीं रुकेगा तब तक जालंधर को कोई भी परास्त नहीं कर पायेगा | परन्तु देवतो की मदद करना भगवान का परम कर्तव्य था | और भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के सामने प्रकट हो गये | वृंदा अपने पति जलंधर को सकुशल सामने देखकर अपनी पूजा को समाप्त करके उनके चरण छूने उठ गयी और जैसे ही वृंदा का संकल्प टुटा उसी समय देवताओ ने जलंधर को मार गिराया | जब जलंधर का कटा हुआ सिर वृंदा के पास गिरा
वृंदा सोच में पड़़ गयी की अगर यह मेरे पति का सिर है तो जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है | तब भगवान श्री विष्णु जी असली रूप में आये तो वृंदा ने भगवान को श्राप दे दिया की तुम पत्थर के बन जाओ | यह देखकर तीनो लोको में हाहाकार मच गया | और माता लक्ष्मी भी रोते हुए सभी देवताओं के साथ वृन्दा से प्रार्थना करने लगी तब वृन्दा ने भगवान को उनके रूप में वापस कर दिया और अपने पति के शरीर के साथ सती हो गयी | जहा वृन्दा सती हुई थी उसी राख के ढेर में एक पेड निकला उसका नाम भगवान विष्णु ने तुलसी रखा था | विष्णु भगवान ने कह की तुलसी मेरी भक्त थी | और जिस घर में तुलसी का पौधा होगा उस घर में मेरी कृपा बनी रहेगी | व उन्होंने कहा की मेरा एक रूप पत्थर का रहेगा जो तुलसी के साथ पूजा जायेगा | और मेरी पूजा तुलसी के बिना अधूरी रहेगी | तब से तुलसी की पूजा होने लगी यह पूजा कार्तिक मास की एकादशी को होती है | तुलसीजी का विवाह सालिग्राम के साथ में किया जाता है इस दिन का दूसरा नाम तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है |

तुलसी विवाह के लिए मन्त्र Mantra for tulsi Vivah

“ऊं तुलस्यै नम:”
मन्त्र के उच्चारण के साथ आप स्वयं भी तुलसी विवाह को करा सकते है ।

तुलसी विवाह की सम्पूर्ण विधि The complete law of Tulsi Vivah

 

देवउठनी एकादसी (Devuthani Ekadashi)के दिन तुलसी (Tulsi)की पूजा (Puja)करने से पहले नाह धोकर साफ सुथरे पीले या लाल वस्त्र धारण करें

 

देवउठनी एकादसी या देवोत्थान एकादशी या प्रबोधनी एकादसी को तुलसी के पौधे को सजाये

 

प्रबोधनी एकादसी को तुलसी के पौधे को अपने घर के आँगन में रखे

 

देवउठनी एकादसी के दिन जब आप पूजा करे तब तुलसी के पेड़ को लाल रंग की चुनडी पहना दे

 

तुलसी के पोधे के चारो तरफ मंडप बनाये और उसे फूलो से सजाए

 

तुलसी के पेड़ को सभी चीजो को या सामग्री अर्पित 

करें

 

तुलसी के पोधे में शालिग्राम जी को रखें भगवन विष्णु मूर्ति रखे |

तुलसी जी के पेड़ को और सालिग्राम जी को हल्दी लगाये और मंडप के भी हल्दी लगाये

 

श्री विष्णु भगवान को तील अर्पित करे तुलसी को चावल नहीं चढ़ाए

सबसे पहले श्री गणेश का ध्यान करे और भगवान श्री विष्णु व तुलसीजी को आँवला, सिंगाड़े, गन्ना, फल, पीले फूल, मिष्ठान, मीठा पान, लौंग, इलाइची, बताशा, बेर, चने की भाजी, भीगी चने की दाल एवं नारियल व जो भी प्रशाद बनाया है उसे अर्पित करे और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाये एवं ॐ तुलस्यै नमः” मंत्र का जाप करे | इसके साथ ही धूप, अगरबत्ती, घी का दीपक जलाकर अन्य देवताओ की भी पूजा करे | इस के बाद शालिग्राम जी को अपने हाथ में लेकर तुलसी के पोधे के चारो तरफ सात बार परिक्रमा दे | परिक्रमा के समय मंत्रो का जाप करते रहे |
और कन्या दान के समय संकल्प करते समय विष्णु भगवान की आराधना करे | हे परम पिता परमेश्वर इस तुलसी को विवाह की विधि से ग्रहण कीजिये। आपको तुलसी जी अत्यंत प्रिय है अतः मैं इसे आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। इस विवाह से मेरे परिवार पर सदैव अपनी कृपा बनाये रखे | और तुलसी विवाह में कन्यादान अवश्य ही करना चाहिए |तुलसी विवाह पर ब्राह्मण को फल, अन्न, वस्त्र, बर्तन, दक्षिणा आदि अवश्य ही दान करनी चाहिए | यह करने के बाद भगवान श्री विष्णु व तुलसी जी की कपूर से आरती करें | इस प्रकार तुलसी विवाह संपन हुआ |

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