गंगा के उद्गम स्थान और गंगोत्री से जुड़ी है ये दिलचस्प पौराणिक गाथा !
गंगोत्री
- पतित पावनी गंगा हमारे देश की सबसे पवित्र
नदी है. मान्यता है कि गंगा
स्वर्ग की नदी है
इसलिए इसके पवित्र जल में डुबकी
लगाकर लोग अपने पापों का प्रायश्चित करते
हैं और मृतकों की
अस्थियों को गंगा में
प्रवाहित करने से उन्हें मोक्ष
की प्राप्ति होती है.
गंगा
जल इतना पवित्र होता है कि हर
पवित्र और धार्मिक कार्य
में इसका उपयोग किया जाता है. गंगा नदी का इतिहास बहुत
पुराना है और इससे
जुड़ी कई पौराणिक कथाएं
भी प्रचलित है.
तो
चलिए जानते हैं धरती पर गंगा के
उद्गम से जुड़ी पौराणिक
गाथा के साथ इसके
उद्गम स्थल से जुड़ी दिलचस्प
बातें.
ऐसे धरती
पर
अवतरित
हुई
थीं
गंगा
रघुकुल
के राजा भागीरथ ने अपने 60 हजार
पूर्वजों की आत्मा की
शांति के लिए प्रण
किया था लेकिन उन्हें
मोक्ष सिर्फ गंगाजल से ही मिल
सकता था.
इसलिए
भागीरथ ने सालों तक
भगवान विष्णु की घोर तपस्या
की.
तपस्या
से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने जब राजा
भागीरथ को दर्शन दिया
तब भागीरथ ने स्वर्ग में
रहनेवाली गंगा को धरती पर
लाने की प्रार्थना की.
लेकिन
गंगा जिनते उग्र स्वभाव की थीं उनका
वेग भी उतना ही
प्रचंड था. अगर वो अपने पूरे
वेग के साथ धरती
पर आ जाती तो
सीधे पाताल में समा जातीं और चारो तरफ
हाहाकर मच जाता.
इसलिए
भगवान विष्णु ने शिव जी
से प्रार्थना की कि वह
गंगा को अपनी जटा
में बांधकर
उनके वेग को अपने वश
में करें. तब भगवान शिव
ने गंगा को अपनी जटा
में बांधा और अपनी जटा
से एक पतली धार
के रुप में गंगा को धरती पर
जाने दिया. इस तरह गंगा
धरती पर अवतरित हुईं
और उन्हें भागीरथी भी कहा जाता
है.
गंगोत्री है
गंगा
का
उद्गम
स्थल
देवभूमि
उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री को गंगा का
उद्गम स्थल माना जाता है. इस स्थल से
गंगा निकलती हैं और सैकड़ों किलोमीटर
की दूरी तय करते हुए
बंगाल की खाड़ी में
मिलती है.
गंगोत्री
पहाड़ के ऐसे स्थान
से निकलती है जहां छिद्र
बना हुआ है और इसी
छिद्र को गोमुख कहा
जाता है. गंगा का सबसे पवित्र
जल इसके उद्गम स्थल में ही रहता है.
गंगोत्री
के पहाड़ों से छोटे रुप
में निकलने वाली गंगा नदी आगे चलकर एक विशाल रुप
धारण कर लेती है.
यह कई पहाड़ों के
बीच से होती हुई
आगे की ओर बढ़ती
है.
गंगोत्री से
जुड़ी
हैं
ये
खास
बातें
गंगा
के उद्गम स्थल गंगोत्री के पास गंगा
का मंदिर, सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुंड जैसे
कई पवित्र स्थल मौजूद है. बताया जाता है कि यहां
पर शंकराचार्य ने गंगा देवी
की एक मूर्ति स्थापित
की थी और इसी
स्थान पर 18वीं सदी में गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने एक मंदिर
बनवाया था.
गंगा
मंदिर के निकट भैरवनाथ
का एक मंदिर भी
है जिसे भागीरथ का तपस्थल कहा
जाता है. यहां स्थित जिस शिला पर बैठकर भागीरथ
ने तपस्या की थी उसे
भागीरथी शिला के नाम से
जाना जाता है. जहां लोग पिंडदान करते हैं.
हर
साल अप्रैल से नवंबर तक
पतित पावनी गंगा मैया के दर्शन के
लिए लाखों तीर्थयात्री गंगोत्री आते है. इस मंदिर के
कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व
पर खुलते हैं जबकि दिवाली के दिन इस
मंदिर के कपाट बंद
होते हैं. सर्दियों के दौरान बर्फबारी
होने की वजह से
यह मंदिर बंद रहता है.
जब
सर्दियों में भारी मात्रा में बर्फ गिरती है तब 6 महीने
के लिए गंगा की मूर्ति को
नीचे धराली के पास मुखवा
में ले जाया जाता
है. जहां उनकी 6 महीने तक विधिवत पूजा
की जाती है.
गौरतलब
है कि गंगोत्री का
मनमोहक नजारा और धरती पर
गंगा के उद्गम से
जुड़ी पौराणिक गाथा पर्यटकों को बरबस अपनी
ओर आकर्षित करता है.
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