अहोई अष्टमी व्रत समय , व्रत कथा, आरती, व्रत विधि

12 अक्टूबर 2017
शाम 5:10 से 6:24 मिनट 
कुल पूजन समय: 1 घंटा 14 मिनट 
तारें देखने का शुभ समय: शाम 5:28 मिनट

व्रत विधि
  1. प्रातःकाल उठकर स्नान करें और व्रत करने का संकल्प लें।
  2. संकल्प: हे माँ मैं अपनी संतान की उन्नति, कुशलता और दीर्घायु के लिये व्रत कर रही हूं, इस व्रत को पूरा करने की आप मुझे शक्ति दें।
  3. पूरे दिन माँ अहोई और पार्वती का ध्यान करें। और आजके दिन क्रोध करने से बचें।
  4. इस दिन, दिन के समय निद्रा से बचें।
  5. अहोई माता का गेरुवें रंग से दीवार पर चित्र बनायें और उनके सात पुत्रों को अंकित करें।
  6. सायंकाल में अहोई माता की पूजा करें और व्रत कथा को ध्यान से पढ़ें या सुनें।
  7. इसके पश्चात सभी बड़े बुज़ुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
  8. तारे निकलने पर तारों को करवे से अर्ध्य दें और इसके पश्चात संतान के द्वारा जल ग्रहण कर व्रत का समापन करें।
 
अहोई माता व्रत कथा
अहोई अष्टमी की व्रत कथा के अनुसार
किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लडके थें। दीपावली आने में केवल सात दिन शेष थें, इसलिये घर की साफ -सफाई के कार्य घर में चल रहे थे, इसी कार्य के लिये साहुकार की पत्नी घर की लीपा-पोती के लिये नदी के पास की खादान से मिट्टी लेने गई। खदान में जिस जगह मिट्टी खोद रही थी, वहीं पर एक सेह की मांद थी। स्त्री की कुदाल लगने से सेह के एक बच्चे की मृ्त्यु हो गई.
यह देख साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ। शोकाकुल वह अपने घर लौट आई। सेह के श्राप से कुछ दिन बाद उसके बडे बेटे का निधन हो गया, फिर दूसरे बेटे की मृ्त्यु हो गई, और इसी प्रकार तीसरी संतान भी उसकी नहीं रही, एक वर्ष में उसकी सातों संतान की मृ्त्यु हो गई।
अपनी सभी संतानों की मृ्त्यु के कारण वह स्त्री अत्यंत दु:खी रहने लगी। एक दिन उसने रोते हुए अपनी दु:ख भरी कथा अपने आस- पडोस कि महिलाओं को बताई, कि उसने जान-बुझकर को पाप नहीं किया है। अनजाने में उससे सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी। उसके बाद मेरे सातों बेटों की मृ्त्यु हो गई. यह सुनकर पडोस की वृ्द्ध महिला ने उसे दिलासा दिया, और कहा की तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है.
तुम माता अहोई अष्टमी के दिन माता भगवती की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना कर, क्षमा याचना करों, तुम्हारा कल्याण होगा। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप समाप्त हो जायेगा। साहूकार की पत्नी ने वृ्द्ध महिला की बात मानकार कार्तिक मास की कृ्ष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का व्रत कर माता अहोई की पूजा की, वह हर वर्ष नियमित रुप से ऎसा करने लगी, समय के साथ उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई, तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रारम्भ हुई है।

अहोई माता आरती
जय अहोई माता, मैया जय अहोई माता। 
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता।।जय।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता। 
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता। 
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।। 
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता। 
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता। 
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता। 
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।

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