ऊँची पहाड़ी पर बसा पावागढ़ शक्तिपीठ Pavagadh shaktipeeth
पंखिड़ा तू उड़ी ने जजे पावागढ़ रे...।
म्हारी महाकाली ने जई ने किजो गरबो रमे रे...।
शक्ति के उपासकों के लिए वेबदुनिया इस बार लेकर आया है गुजरात की ऊंची पहाड़ी पर बसा पावागढ़ मंदिर। काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती मां के अंग गिरे थे।
पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय मां के अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में मां के वक्षस्थल गिरे थे।
जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहां की एक खास बात यह भी है कि यहां दक्षिण मुखी काली मां की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति अर्थात तांत्रिक पूजा की जाती है।
इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहां काली मां की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली मां की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहां बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्री’ किया गया है।
इसी तरह पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव काम था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी चहुंतरफा था, इसलिए इसे पावागढ़ अर्थात ऐसी जगह कहा गया जहां पवन का वास हो।
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊंचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है। अब सरकार ने यहां रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है, जिसके जरिये आप पहाड़ी तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यह सुविधा माछी से शुरू होती है। यहां से रोप-वे लेकर श्रद्धालु पावागढ़ पहाड़ी के ऊपरी हिस्से तक पहुंचते हैं। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे।
नवरात्र के समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहां गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहां दर्शन करने के बाद मां उनकी हर मुराद पूरी कर देती है।
- अक्षेश सावलिया
कैसे जाएं-
वायुमार्ग : यहां से सबसे नजदीक अहमदाबाद का एयरपोर्ट है, जिसकी यहां से दूरी लगभग 190 किलोमीटर और वडोदरा से 50 किलोमीटर है।
रेलमार्ग: यहां का नजदीकी बड़ा रेलवे स्टेशन वडोदरा में है जो कि दिल्ली और अहमदाबाद से सीधी रेल लाइनों से जुड़ा हुआ है। वडोदरा पहुंचने के बाद सड़क यातायात के सुलभ साधन उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग: प्रदेश सरकार और निजी कंपनियों की कई लक्जरी बसें और टैक्सी सेवा गुजरात के अनेक शहरों से यहां के लिए संचालित की जाती है।
म्हारी महाकाली ने जई ने किजो गरबो रमे रे...।
शक्ति के उपासकों के लिए वेबदुनिया इस बार लेकर आया है गुजरात की ऊंची पहाड़ी पर बसा पावागढ़ मंदिर। काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती मां के अंग गिरे थे।
पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय मां के अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में मां के वक्षस्थल गिरे थे।
जगतजननी के स्तन गिरने के कारण इस जगह को बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है। यहां की एक खास बात यह भी है कि यहां दक्षिण मुखी काली मां की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति अर्थात तांत्रिक पूजा की जाती है।
इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहां काली मां की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली मां की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहां बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्री’ किया गया है।
इसी तरह पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव काम था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी चहुंतरफा था, इसलिए इसे पावागढ़ अर्थात ऐसी जगह कहा गया जहां पवन का वास हो।
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊंचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है। अब सरकार ने यहां रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है, जिसके जरिये आप पहाड़ी तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यह सुविधा माछी से शुरू होती है। यहां से रोप-वे लेकर श्रद्धालु पावागढ़ पहाड़ी के ऊपरी हिस्से तक पहुंचते हैं। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे।
नवरात्र के समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों की यहां गहरी आस्था है। उनका मानना है कि यहां दर्शन करने के बाद मां उनकी हर मुराद पूरी कर देती है।
- अक्षेश सावलिया
कैसे जाएं-
वायुमार्ग : यहां से सबसे नजदीक अहमदाबाद का एयरपोर्ट है, जिसकी यहां से दूरी लगभग 190 किलोमीटर और वडोदरा से 50 किलोमीटर है।
रेलमार्ग: यहां का नजदीकी बड़ा रेलवे स्टेशन वडोदरा में है जो कि दिल्ली और अहमदाबाद से सीधी रेल लाइनों से जुड़ा हुआ है। वडोदरा पहुंचने के बाद सड़क यातायात के सुलभ साधन उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग: प्रदेश सरकार और निजी कंपनियों की कई लक्जरी बसें और टैक्सी सेवा गुजरात के अनेक शहरों से यहां के लिए संचालित की जाती है।
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