Mahamaya Devi

बृषपर्बा नामक असुर को मारने के लिए त्रिदेवों ने तीन ताप- तीन कर्म -तथा तीन अग्नियों को एक में मिलाकर वेदगर्भा नामक देवी को उपजाया ।
 
मां से युद्ध करने असुर सिंह का रूप धर के आया। तब मां ने अपना शीश सिंह का कर लिया और असुर का बध कर दिया, बध करते ही मां के हाथ से रक्त गिरा उस रक्त से क्षेमकरी देवी का प्रादुर्भाव हो गया।
 
श्रृष्टि के प्रथम कल्प में कामकासुर नामक असुर मां पे मोहित हो गया और मां क्षेम्या का हरण करने आ गया।उस असुर के नौ शीश थे। असुर हाथी का रूप धारण किये था।
मां से असुर का युद्ध हुआ मां ने उसका बध किया। मां के दाँये पग मेंअस्त्र लगने से रक्त भूमि पे गिरा उस रक्त से हेमवती देवी का जन्म हुआ ।
 
माता क्षेमकरी और माता हेमवती दुष्टों का बध करके मणिद्वीप अपने निवास स्थान पे वापस आके सिंहासन पर बिराजमान हो गईं ।
सिंहासन पर बैठते ही सिंहासन धू धू करके जलने लगा ।यह देख कर सारे देवगण परेशान हो गये। विश्वकर्मा जी ने कई बार सिंहासन का निर्माण किया लेकिन जितनी बार माता जी सिंहासन पर बैठीं वह सिंहासन जल के राख हो गया।
 
अंत में अदभुत सिंहासन का निर्माण हुआ । सिंहासन के चार पाये चार देवता बने। सिंहासन में जो पटरे लगाये गये वह पटरे सूर्य देव बने ।
सिंहासन मे जो ध्वजा लगाई गई वह ध्वजा यमराज बने । अग्नि देव नीलमणि का रूप धारण करके सिंहासन में लगे ।

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