Diwali or Deepavali
दिवाली हिन्दू धर्म का मुख्य पर्व है। रोशनी का पर्व दिवाली कार्तिक
अमावस्या के दिन मनाया जाता है। दिवाली को दीपावली (Deepawali) के नाम से
भी जाना जाता है। मान्यता है कि दीपों से सजी इस रात में लक्ष्मीजी भ्रमण
के लिए निकलती हैं और अपने भक्तों को खुशियां बांटती हैं। दिवाली मनाने के
पीछे मुख्य कथा (About Diwali in Hindi) विष्णुजी के रूप भगवान श्री राम से
जुड़ी है।
छोटी दिवाली के पीछे की कहानी।
दंतकथाओं के अनुसार नरकासुर नाम का एक राक्षस था जो प्रागज्योतिषपुर
राज्य का राजा था। उसने इंद्र को युद्ध में परास्त करके माँ देवी की कान की
बालियों को छीन लिया था। येही नहीं उसने देवताओं और रिशिओं की 16 हज़ार
बेटियों का अपहरण करके उनको अपने इस्त्रिग्रह में बंदी बना रखा
था। इस्त्रियों के प्रति नरकासुर के द्वेष को देख कर सत्यभामा ने कृष्णा से
यह निवेदन किया की उन्हें नरकासुर का वध करने का अवसर प्रदान किया जाये।
यह भी मान्यता है की नरकासुर को यह श्राप था की उसकी मृत्यु एक इस्त्री के
हाथ ही होगी। सत्यभामा कृष्ण द्वारा चलाय जा रहे रथ में बेठ कर युद्ध करने
के लिए गयी। उस युद्ध में सत्यभामा ने नरकासुर को परास्त करके उसका वध किया
और सभी कन्याओं को छुडवा लिया।
इसी दिन को नरका चतुर्दशी कहते है। छोटी दिवाली भी इसी दिन मनाई जाती
है। इसका कारण यह है ही नरकासुर की माता भूदेवी ने यीह घोषणा की थी की उसके
पुत्र की मृत्यु के दिन को मातम के तौर पर नहीं बल्कि त्यौहार के तौर पर
याद रखा जाये।
दीपावली पर्व के पीछे कथा (Story of Deepawali in Hindi)
अपने प्रिय राजा श्री राम के वनवास समाप्त होने की खुशी में अयोध्यावासियों
ने कार्तिक अमावस्या की रात्रि में घी के दिए जलाकर उत्सव मनाया था। तभी
से हर वर्ष दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार का वर्णन विष्णु
पुराण के साथ-साथ अन्य कई पुराणों में किया गया है।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा (Deepawali Pooja Vidhi Hindi)
अधिकांश घरों में दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा (Laxmi Puja on
Diwali) की जाती है। हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की रात्रि में लक्ष्मी
जी धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है। दीपावली के
दिन गणेश जी की पूजा का यूं तो कोई उल्लेख नहीं परंतु उनकी पूजा के बिना हर
पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश
जी की भी पूजा की जाती है।
दीपदान (Deepdan in Hindi)
दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस
दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ
माना जाता है।
मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है
तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग
आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।
दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता की एक अनोखी छठा को पेश करता है। आज अवश्य
पटाखों की शोर में माता लक्ष्मी की आरती का शोर कम हो गया है लेकिन इसके पीछे की मूल भावना आज भी बनी हुई है।
अमावस्या के दिन मनाया जाता है। दिवाली को दीपावली (Deepawali) के नाम से
भी जाना जाता है। मान्यता है कि दीपों से सजी इस रात में लक्ष्मीजी भ्रमण
के लिए निकलती हैं और अपने भक्तों को खुशियां बांटती हैं। दिवाली मनाने के
पीछे मुख्य कथा (About Diwali in Hindi) विष्णुजी के रूप भगवान श्री राम से
जुड़ी है।
छोटी दिवाली के पीछे की कहानी।
दंतकथाओं के अनुसार नरकासुर नाम का एक राक्षस था जो प्रागज्योतिषपुर
राज्य का राजा था। उसने इंद्र को युद्ध में परास्त करके माँ देवी की कान की
बालियों को छीन लिया था। येही नहीं उसने देवताओं और रिशिओं की 16 हज़ार
बेटियों का अपहरण करके उनको अपने इस्त्रिग्रह में बंदी बना रखा
था। इस्त्रियों के प्रति नरकासुर के द्वेष को देख कर सत्यभामा ने कृष्णा से
यह निवेदन किया की उन्हें नरकासुर का वध करने का अवसर प्रदान किया जाये।
यह भी मान्यता है की नरकासुर को यह श्राप था की उसकी मृत्यु एक इस्त्री के
हाथ ही होगी। सत्यभामा कृष्ण द्वारा चलाय जा रहे रथ में बेठ कर युद्ध करने
के लिए गयी। उस युद्ध में सत्यभामा ने नरकासुर को परास्त करके उसका वध किया
और सभी कन्याओं को छुडवा लिया।
इसी दिन को नरका चतुर्दशी कहते है। छोटी दिवाली भी इसी दिन मनाई जाती
है। इसका कारण यह है ही नरकासुर की माता भूदेवी ने यीह घोषणा की थी की उसके
पुत्र की मृत्यु के दिन को मातम के तौर पर नहीं बल्कि त्यौहार के तौर पर
याद रखा जाये।
दीपावली पर्व के पीछे कथा (Story of Deepawali in Hindi)
अपने प्रिय राजा श्री राम के वनवास समाप्त होने की खुशी में अयोध्यावासियों
ने कार्तिक अमावस्या की रात्रि में घी के दिए जलाकर उत्सव मनाया था। तभी
से हर वर्ष दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार का वर्णन विष्णु
पुराण के साथ-साथ अन्य कई पुराणों में किया गया है।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा (Deepawali Pooja Vidhi Hindi)
अधिकांश घरों में दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा (Laxmi Puja on
Diwali) की जाती है। हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की रात्रि में लक्ष्मी
जी धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है। दीपावली के
दिन गणेश जी की पूजा का यूं तो कोई उल्लेख नहीं परंतु उनकी पूजा के बिना हर
पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश
जी की भी पूजा की जाती है।
दीपदान (Deepdan in Hindi)
दीपावली के दिन दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। नारदपुराण के अनुसार इस
दिन मंदिर, घर, नदी, बगीचा, वृक्ष, गौशाला तथा बाजार में दीपदान देना शुभ
माना जाता है।
मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है
तो, उसके घर में कभी भी दरिद्रता का वास नहीं होता। इस दिन गायों के सींग
आदि को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।
दीपावली पर्व भारतीय सभ्यता की एक अनोखी छठा को पेश करता है। आज अवश्य
पटाखों की शोर में माता लक्ष्मी की आरती का शोर कम हो गया है लेकिन इसके पीछे की मूल भावना आज भी बनी हुई है।
जैसे हिन्दू और जैन धर्म में दिवाली को लेकर अपनी-अपनी मान्यताएं है वैसे
ही सिख धर्म में भी दिवाली को मनाने हेतु अपनी ही अलग मान्यता है।
सिख धर्म में जो प्रचलित मान्यता है, यहाँ आप उसके बारे में पढेंगे ।
सिख धर्म में छठे गुरु ,गुरु हरगोबिन्द साहिब जी को उस समय के मुग़ल शहंशाह
जहांगीर ने ग्वालियर के किले में गुरु जी को बंदी बना लिया । क्यूंकि गुरु
जी तो गुरु थे ,वह जेल में भी दोनों समय कीर्तन करने लगे ।
गुरु जी जेल में थे और ऐसे समय में उनके श्रद्धालु कैसे चैन से बैठ जाते । गुरु जी को छुड़वाने के लिए सिखों का एक जत्था श्री आकाल तख़्त साहिब जी से अरदास करके बाबा बुढा जी की
अगुवाई में ग्वालियर के किले के लिए रवाना हो गया। जब यह ग्वालियर के किले
में पहुंचे तो इन्हें गुरु जी से मिलने भी न दिया गया जिसके फलस्वरूप
सिखों में और भी ज्यादा रोष हो गया।
इसके पश्चात साई मिया मीर जी ने जहांगीर से गुरु जी को छुड़वाने के लिए बात की ,जिसमे वह सफल भी रहे।
लेकिन गुरु जी ने अकेले किले से रिहाई के लिए मना कर दिया क्योंकि गुरु
जी वहां क़ैद अन्य राजाओं को भी जेल के बंधन से मुक्ति दिलवाना चाहते
थे।जहांगीर ने गुरु जी की बात मान ली लेकिन उसने कहा कि वह सिर्फ उतने
राजाओं को ही छुड़वा सकते है जितने कि उन्हें पकड़े सके । ऐसा जहांगीर ने कैद
से रिहा होने वालो की संख्या कम करने के लिए कहा था। गुरु जी भी मान गए।
गुरु जी ने अपने लिए एक खास तरह के वस्त्र तैयार कराये जिन्हें सभी राजा
पकड़ सकते थे। रिहाई के समय कैद में रह रहे 52 के 52 राजा ही गुरु जी को पकड़
कर रिहा हो गए।
जिस दिन गुरु जी रिहा हुए थे वह कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था यानी
की दिवाली का दिन। गुरु जी रिहा होकर अमृतसर पहुंचे। गुरु जी के वापिस आने
की ख़ुशी में सभी लोगों ने अपने घर में दीये जलाये तथा श्री हरमंदिर साहिब में
भी लोगों ने ख़ुशी से दीये जलाये। इसी दिन की ख़ुशी में आज भी श्री हरमंदिर
साहिब में दिवाली का त्यौहार बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
ही सिख धर्म में भी दिवाली को मनाने हेतु अपनी ही अलग मान्यता है।
सिख धर्म में जो प्रचलित मान्यता है, यहाँ आप उसके बारे में पढेंगे ।
सिख धर्म में छठे गुरु ,गुरु हरगोबिन्द साहिब जी को उस समय के मुग़ल शहंशाह
जहांगीर ने ग्वालियर के किले में गुरु जी को बंदी बना लिया । क्यूंकि गुरु
जी तो गुरु थे ,वह जेल में भी दोनों समय कीर्तन करने लगे ।
गुरु जी जेल में थे और ऐसे समय में उनके श्रद्धालु कैसे चैन से बैठ जाते । गुरु जी को छुड़वाने के लिए सिखों का एक जत्था श्री आकाल तख़्त साहिब जी से अरदास करके बाबा बुढा जी की
अगुवाई में ग्वालियर के किले के लिए रवाना हो गया। जब यह ग्वालियर के किले
में पहुंचे तो इन्हें गुरु जी से मिलने भी न दिया गया जिसके फलस्वरूप
सिखों में और भी ज्यादा रोष हो गया।
इसके पश्चात साई मिया मीर जी ने जहांगीर से गुरु जी को छुड़वाने के लिए बात की ,जिसमे वह सफल भी रहे।
लेकिन गुरु जी ने अकेले किले से रिहाई के लिए मना कर दिया क्योंकि गुरु
जी वहां क़ैद अन्य राजाओं को भी जेल के बंधन से मुक्ति दिलवाना चाहते
थे।जहांगीर ने गुरु जी की बात मान ली लेकिन उसने कहा कि वह सिर्फ उतने
राजाओं को ही छुड़वा सकते है जितने कि उन्हें पकड़े सके । ऐसा जहांगीर ने कैद
से रिहा होने वालो की संख्या कम करने के लिए कहा था। गुरु जी भी मान गए।
गुरु जी ने अपने लिए एक खास तरह के वस्त्र तैयार कराये जिन्हें सभी राजा
पकड़ सकते थे। रिहाई के समय कैद में रह रहे 52 के 52 राजा ही गुरु जी को पकड़
कर रिहा हो गए।
जिस दिन गुरु जी रिहा हुए थे वह कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था यानी
की दिवाली का दिन। गुरु जी रिहा होकर अमृतसर पहुंचे। गुरु जी के वापिस आने
की ख़ुशी में सभी लोगों ने अपने घर में दीये जलाये तथा श्री हरमंदिर साहिब में
भी लोगों ने ख़ुशी से दीये जलाये। इसी दिन की ख़ुशी में आज भी श्री हरमंदिर
साहिब में दिवाली का त्यौहार बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
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