अहोई अष्टमी पर राधाकुंड में स्नान से संतान की होती है प्राप्ति

राधा कृष्ण की जोड़ी प्रेम का आदर्श है। इनके प्रेम से जुड़ी कई दंत कथाएं भी इसलिए आज भी प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा है राधा के कृष्ण जी से नाराज होने की और राधाकुंड और कृष्ण कुंड के निर्माण की। इन कुंडों का निर्माण कृष्ण जी ने अपने पैर से व राधाजी ने अपने कंगन से किया था। इसलिए कुंड में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और संतान सुख मिलता है।
आइए आज ‘हमारौ ब्रज‘ डेस्क से जानते हैं कहां स्थित हैं ये कुंड और क्या है इनके निर्माण की कथा…
कृष्ण कुंड की कथा

The Glories of Radha and Shyam Kund in braj bhoomi
माना जाता है
कि जब श्रीकृष्ण ने कंस के भेजे राक्षस अरिष्टासुर का वध कर दिया। उसके बाद उन्होंने राधा को स्पर्श कर लिया। तब राधा जी उनसे कहने लगी की आप कभी मुझे स्पर्श मत कीजिएगा, क्योंकि आपके सिर पर गौ हत्या का पाप है। आपने मुझे स्पर्श कर लिया है और मैं भी गौ हत्या के पाप में भागीदार बन गई हूं। यह सुनकर श्रीकृष्ण को राधाजी के भोलेपन पर हंसी आ गई। उन्होंने कहा राधे मैंने बैल का नहीं, बल्कि असुर का वध किया है।

तब राधाजी बोलीं आप कुछ भी कहें, लेकिन उस असुर का वेष तो बैल का ही था। इसलिए आपको गौ हत्या के पापी हुए। यह बात सुनकर गोपियां बोली प्रभु जब वत्रासुर की हत्या करने पर इन्द्र को ब्रह्मा हत्या का पाप लगा था तो आपको पाप क्यों नहीं लगेगा। श्रीकृष्ण मुस्कुराकर बोले अच्छा तो आप सब बताइए कि मैं इस पाप से कैसे मुक्त हो सकता हूं। तब राधाजी ने अपनी सखियों के साथ श्रीकृष्ण से कहा जैसा कि हमने सुना है कि सभी तीर्थों में स्नान के बाद ही आप इस पाप से मुक्त हो सकते हैंं।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने पैर को अंगूठे को जमीन की ओर दबाया। पाताल से जल निकल आया। जल देखकर राधा और गोपियां बोली हम विश्वास कैसे करें कि यह तीर्थ की धाराओं का जल है। उनके ऐसा कहने पर सभी तीर्थ की धाराओं ने अपना परिचय दिया। इस तरह कृष्ण कुंड का निर्माण हुआ।

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