किसने दिया भगवन विष्णु को श्राप , जिसकी वजह से भगवान विष्णु को लेने पड़ा धरती पर 7 बार जन्म !!!
किसके श्राप के कारण भगवान विष्णु को सात बार मानव रूप में लेना पड़ा था पृथ्वी पर जन्म। तो आइए इस पर बातचीत करते हैं। जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि शुक्र का प्रभाव होता है तो उस व्यक्ति के पास भोग विलास की समस्त वस्तुएं उपलब्ध होती हैं। परंतु सब कुछ होने के बावजूद भी वह व्यक्ति संतुष्ट नहीं रहता। वह हर वक्त किसी न किसी चिंता में दुखी रहता है।
ज्योतिष ज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह को भोग का कारक कहा गया है। शुक्र के विषय में प्राणों से एक रोचक गाथा मिलती है। जो भगवान विष्णु के पृथ्वी में 7 बार अवतरित होने का कारण बनी। महर्षि भृगु के पुत्र शुक्र दानवो के गुरु थे तथा वे हमेशा गुरु बर्हस्पति से इर्षा करते थे। क्योंकि गुरु बर्हस्पति देवताओं के गुरु थे।
शुक्र आसुर राज बलि के भी गुरु थे जिन्होंने भगवान विष्णु के वामन रूपी अवतार को तीन पद दान में दिया था। तथा उन्हें स्वयं पाताल में जाकर रहना पड़ा था। हरिवंश पुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार एक बार दानव गुरु शुक्र भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत गए तथा उनसे दानवो को देवताओं से सुरक्षित करने का उपाय पूछा।
शिवजी भोले कि तप ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके प्रभाव से तुम दानवो को देवताओं से सुरक्षित रख सकते हो। भगवान शिव की आज्ञा से शुक्र तप करने चले गए तथा कई वर्षों तक उनहोने घोर तप किया। जब शुक्र तप में लीन थे तो उस समय देवताओं और असुरों के मध्य बहुत भयंकर युद्ध हुआ।
व् इस युद्ध में भगवान विष्णु ने शुक्र की माता का वध किया। इधर जब शुक्र का तप खतम हुआ तो उन्हें वरदान सवरूप मृत संजीवनी की दीक्षा प्राप्त हुई। इस शक्ति के प्रभाव से वे मृत व्यक्ति को पुन: जीवित कर सकते थे। तपस्या के बाद वापस अपने आश्रम में लौटने पर जब उन्होंने देखा कि उनकी माता मृत पड़ी है
तो वह क्रोधित हो गए उन्होंने तपोबल के प्रभाव से यह ज्ञात कर लिया कि उनकी माता की मृत्यु का कारण भगवान विष्णु है तो वे भगवान विष्णु को श्राप देते हुए बोले विष्णु तुम्हें 7 बार धरती पर जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त होना पड़ेगा। शुक्र द्वारा दिया श्राप भगवान विष्णु के लिए वरदान सिद्ध हुआ और दानवों के लिए श्राप।
क्योंकि भगवान विष्णु ने सात बार पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेकर अत्याचारों का संहार किया। शुक्र को दानवो द्वारा गुरू शुक्राचार्य के नाम से भी पुकारा जाता था। पुराणों में यह उल्लेखित है कि शुक्राचार्य ने एक शुक्रनीति नाम से एक ग्रंथ की रचना की थी। तो ये थी हमारी आज की जानकारी।
धन्यवाद।
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ज्योतिष ज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह को भोग का कारक कहा गया है। शुक्र के विषय में प्राणों से एक रोचक गाथा मिलती है। जो भगवान विष्णु के पृथ्वी में 7 बार अवतरित होने का कारण बनी। महर्षि भृगु के पुत्र शुक्र दानवो के गुरु थे तथा वे हमेशा गुरु बर्हस्पति से इर्षा करते थे। क्योंकि गुरु बर्हस्पति देवताओं के गुरु थे।
शुक्र आसुर राज बलि के भी गुरु थे जिन्होंने भगवान विष्णु के वामन रूपी अवतार को तीन पद दान में दिया था। तथा उन्हें स्वयं पाताल में जाकर रहना पड़ा था। हरिवंश पुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार एक बार दानव गुरु शुक्र भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत गए तथा उनसे दानवो को देवताओं से सुरक्षित करने का उपाय पूछा।
शिवजी भोले कि तप ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके प्रभाव से तुम दानवो को देवताओं से सुरक्षित रख सकते हो। भगवान शिव की आज्ञा से शुक्र तप करने चले गए तथा कई वर्षों तक उनहोने घोर तप किया। जब शुक्र तप में लीन थे तो उस समय देवताओं और असुरों के मध्य बहुत भयंकर युद्ध हुआ।
व् इस युद्ध में भगवान विष्णु ने शुक्र की माता का वध किया। इधर जब शुक्र का तप खतम हुआ तो उन्हें वरदान सवरूप मृत संजीवनी की दीक्षा प्राप्त हुई। इस शक्ति के प्रभाव से वे मृत व्यक्ति को पुन: जीवित कर सकते थे। तपस्या के बाद वापस अपने आश्रम में लौटने पर जब उन्होंने देखा कि उनकी माता मृत पड़ी है
तो वह क्रोधित हो गए उन्होंने तपोबल के प्रभाव से यह ज्ञात कर लिया कि उनकी माता की मृत्यु का कारण भगवान विष्णु है तो वे भगवान विष्णु को श्राप देते हुए बोले विष्णु तुम्हें 7 बार धरती पर जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त होना पड़ेगा। शुक्र द्वारा दिया श्राप भगवान विष्णु के लिए वरदान सिद्ध हुआ और दानवों के लिए श्राप।
क्योंकि भगवान विष्णु ने सात बार पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेकर अत्याचारों का संहार किया। शुक्र को दानवो द्वारा गुरू शुक्राचार्य के नाम से भी पुकारा जाता था। पुराणों में यह उल्लेखित है कि शुक्राचार्य ने एक शुक्रनीति नाम से एक ग्रंथ की रचना की थी। तो ये थी हमारी आज की जानकारी।
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